पृष्ठ:कामना.djvu/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

अक १, दृश्य ४

(विलास जाता है । छाया अदृश्य हो जाती है)

(एक ओर से कामना, दूसरी ओर से विनोद का प्रवेश)

कामना-विनोद ! तुम इधर लीला से मिले थे? वह तुम्हे एक दिन खोज रही थी।

विनोद-सन्तोष के कारण मै उससे नही मिलता । आज उसका ब्याह होने वाला था न।

कामना-वह सन्तोष से न ब्याह करेगी ? चलो, फूलो का मुकुट पहनाकर तुम्हे ले चलूं।

विनोद-मै?

कामना-हाँ।



चौथा दृश्य

स्थान-लीला का कुटीर

(फूल-मंडप मे लीला)

लीला-आज मिलन-रात्रि है । आज दो अधूरे मिलेंगे, एक पूरा होगा । मधुर जीवन-स्त्रोत को संतोष की शीतल छाया मे बहा ले जाना आज से हमारा कर्तव्य होना चाहिये । परंतु मुझे वैसी आशा नहीं । मेरा हृदय व्याकुल है, चंचल है, लालायित है,

मेरा सब कुछ अपूर्ण है केवल उसी चमकीली वस्तु

१९