पृष्ठ:कामना.djvu/७४

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अंक २, दृश्य ५
 


चाहिये कि देखकर लोग काँप उठे, फिर कोई ऐसा दुस्साहस न करे।

विवेक-जिसमे डरकर लोग तुम्हारा सोना न छुएँ।

कामना-कौन है यह ?

विनोद-वही पागल ।

विवेक-इसने उसी वस्तु के लेने का प्रयत्न किया है, जिसकी आवश्यकता इस समय समग्र द्वीपवासियो को है । फिर-

विलास-परंतु इसका उद्योग अनुचित था ।

विवेक-मैं पागल हूँ, क्या समझूँगा कि उचित उपाय क्या है। उपाय वही उचित होगा, जिसे आप नियम का रूप देंगे । परंतु मै पूछता हूँ, यहाँ इतने लोग खड़े है, इनमें कौन ऐसा है, जिसे सोना न चाहिये ?

(कामना विलास का मुँह देखती है)

विवेक-वाह | कैसा सुंदर खेल है । खेलने के लिए बुलाते हो, और उसे फंसाकर नचाते हो। स्वयं ज्वाला फैला दी है; अब पतंग गिरने लगे हैं, तो उनको भगाना चाहते हो ?

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