पृष्ठ:कामना.djvu/७७

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कामना

जीवन बोझ हो रहा है। क्या करूँ, अकेली बैठी हूँ, इतना सोना है, परंतु इसका भोग नही, इसका सुख नहीं । ओह । ( उठती और मदिरा का पात्र भरकर पीती है ) परंतु नहीं, यह जीवन, जिसके लिए अनंत सुख-साधन है, रोकर बिता देने के लिए नहीं है। सब सुखी हैं, सब सुख की चेष्टा में है, फिर मैं ही क्यों कोने में बैठकर रुदन करूँ ? देखो, कामना रानी है। वह भी तो इसी द्वीप की एक लड़की है। फिर कौन-सी बात ऐसी है, नो मेरे रानी होने मे बाधक है ? मै भी रानी हो सकती हूँ, यदि विलास को-हॉ, क्यो नही । ( अपने आभूषणों को देखती है, वेश-भूषा सँवारती है, और गाती है)-

किसे नहीं चुभ जाय, नैनों के तीर नुकीले ?
पलकों के प्याले रसीले, अलकों के फंदे गॅसीले,
कौन देखूँ बच जाय, नैनों के तीर नुकीले ।

(विलास का प्रवेश)

विलास-लालसा । लालसा ! यह कैसा संगीत है ? यह अमृत-वर्षा ! मुझे नही विदित था कि इस मरुभूमि में मीठे पानी का सोता छिपा हुआ बह रहा है। इधर से चला जा रहा था, अकस्मात् यह मनोहर

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