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तीसरा अंक

पहला दृश्य

क्रूर दुर्वृत्त, प्रमदा और दम्भ

(नवीन नगर का एक भाग, आचार्य दम्भ का घर)

दम्भ-निर्जन प्रान्तो मे गन्दे झोपड़े। बिना प्रमोद की रातें। दिन-भर कड़ी धूप मे परिश्रम करके मृतको की-सी अवस्था मे पड़ रहना। संस्कृति-विहीन, धर्म-विहीन जीवन। तुम लोगो का मन तो अवश्य ऊब गया होगा।

प्रमदा-आचार्य-कहीं मदिरा की गोष्ठी के उपयुक्त स्थान नहीं। संकेत-गृहों का भी अभाव! उजड़े कुंज, खुले मैदान और जंगल, शीत, वर्षा तथा ग्रीष्म की सुविधा का कोई साधन नहीं। कोई भी विलास-शील प्राणी कैसे सुख पावे।

दम्भ-इसी लिए तो नवीन नगर-निर्माण के मेरी योजना सफल हो चली है। झुंड-के-झुंड लोग

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