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कायाकल्प]
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छाया हुआ था। राजा साहब ने उसे इधर आते देख लिया। वह उससे एकान्त में बातें करना चाहते थे। मौका पाया, तो उसके सामने आकर खड़े हो गये।

मनोरमा ने कहा—रानीजी के सामने इस झूले घर में कितनी रौनक थी। अब जिधर देखती हूँ, सूना ही सूना दिखायी देता है।

राजा—अब तुम्हीं से इसकी फिर रौनक होगी, मनोरमा! यह भी मेरे हृदय की तरह तुम्हारी ओर आँखें लगाये बैठा है!

प्रणय के ये शब्द पहली बार मनोरमा के कानों में पड़े। उसका मुखमण्डल लज्जा से आरक्त हो गया। वह सहमी-सी खड़ी रही। कुछ बोल न सकी।

राजा साहब फिर बोले—मनोरमा, यद्यपि मेरे तीन रानियाँ है; पर मेरा हृदय अबतक अक्षुण्ण है, उस पर आज तक किसी का अधिकार नहीं हुआ। कदाचित् वह अज्ञात रूप से तुम्हारी राह देख रहा था। तुमने मेरी रानियों को देखा है, उनकी बातें भी सुनी हैं। उनमें ऐसी कौन है, जिसकी प्रेमोपासना की जाय। मुझे तो यही आश्चर्य होता है कि इतने दिन इनके साथ कैसे काटे!

मनोरमा ने गम्भीर होकर कहा—मेरे लिए यह सौभाग्य की बात होगी कि आपकी प्रेम-पात्री बनूँ; पर मुझे भय है कि मैं आदर्श पत्नी न बन सकूँगी। कारण तो नहीं बतला सकती, मैं स्वयं नहीं जानती; पर मुझे यह भय अवश्य है। मेरी हार्दिक इच्छा सदैव यही रही है कि किसी बन्धन में न पड़ूँ। पक्षियों की भाँति स्वाधीन रहना चाहती हूँ।

राजा ने मुस्कराते हुए कहा—मनोरमा, प्रेम तो कोई बन्धन नहीं है।

मनोरमा—प्रेम बन्धन न हो; पर धर्म तो बन्धन है। मैं प्रेम के बन्धन से नहीं घबराती, धर्म के बन्धन से घबराती हूँ। आपको मुझ पर बड़ी कठोरता से शासन करना होगा। मैं आपको अपनी कुञ्जी पहले ही से बताये देती हूँ। मैं आपको धोखा नहीं देना चाहती। मुझे आपसे प्रेम नहीं है। शायद हो भी न सकेगा। (मुस्कराकर) मैं रानी तो बनना चाहती हूँ; पर किसी राजा की रानी नहीं। हाँ, आपको प्रसन्न रखने की चेष्टा करुँगी। जब आप मुझे भटकते देखें, टोक दें। मुझे ऐसा मालूम होता है कि मैं प्रेम करने के लिए नहीं, केवल विलास करने के लिए ही बनायी गयी हूँ।

राजा—तुम अपने ऊपर जुल्म कर रही हो, मनोरमा! तुम्हारा वेष तुम्हारी बातों का विरोध कर रहा है। तुम्हारे हृदय में वह प्रकाश है, जिसकी एक ज्योति मेरे समस्त जीवन के अवकार का नाश कर देगी।

मनोरमा—मैं दोनों हाथों से धन उड़ाऊँगी। आपको बुरा तो न लगेगा? मैं धन की लौंडी बनकर नहीं, उनकी रानी बनकर रहूँगी।

राजा—मनोरमा, राज्य तुम्हारा है, धन तुम्हारा है, मैं तुम्हारा हूँ। सब तुम्हारी इच्छा के दास होंगे।

मनोरमा—मुझे बातें करने की तमीज नहीं है। यह तो आप देख ही रहे हैं।