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[कायाकल्प
 

वे किसी तरह न बच सकते थे। कैदियों में पिल पड़ना उनकी सबसे बड़ी भूल थी। उनके ऐसे हाथ-पाँव फूले, होश ऐसे गायब हुए कि कुछ निश्चय न कर सके कि इस समय क्या करना चाहिए। कैदियों ने तुरन्त उनकी मुश्कें चढ़ा दीं और बन्दूक ले-लेकर उनके सिर पर खड़े हो गये। यह सब कुछ पाँच मिनट में हो गया। ऐसा दाँव पड़ा कि वही लोग जो जरा देर पहले हेकड़ी जताते थे, कैदियों को पाँव की धूल समझते थे, अब उन्हीं कैदियों के सामने खड़े दया प्रार्थना कर रहे थे, घिघियाते थे, मत्थे टेकते थे और रोते थे। दारोगाजी की सूरत तो तसवीर खींचने योग्य थी। चेहरा फक, हवाइयाँ उड़ी हुईं, थर-थर काँप रहे थे कि देखें, जान बचती है या नहीं।

कैदियों ने देखा, इस वक्त हमारा राज्य है, तो पुराने बदले चुकाने पर तैयार हो गये। धन्नासिंह लपका हुआ दारोगा के पास आया और जोर से एक धक्का देकर बोला—क्यों खाँ साहब, उखाड़ लूँ डाढ़ी के एक-एक बाल?

चक्रधर—धन्नासिंह हट जाओ।

धन्नासिंह—मरना तो है ही, अब इन्हें क्यों छोड़ें?

चक्रधर—हम कहते हैं, हट जाओ, नहीं तो अच्छा न होगा।

धन्नासिंह—अच्छा हो चाहे बुरा, हमारे साथ इन लोगों ने जो सलूक किये हैं, उसका मजा चखाये बिना न छोड़ेंगे।

एक कैदी—हमारी जान तो जाती ही है, पर इन लोगों को तो न छोड़ेंगे।

दूसरा कैदी—एक-एक की हड्डियाँ तोड़ दो। दो-दो, चार-चार साल और सही। अभी कौन सुख भोगरहे हैं, जो सजा को डरें। आखिर घूम-घाम के यहीं तो फिर आना है।

चक्रधर—मेरे देखते तो यह अनर्थ न होने पायेगा। हाँ, मर जाऊँ तो जो चाहे करना!

धन्नासिंह—अगर ऐसे बड़े धर्मात्मा हो, तो इनको क्यों नहीं समझाया? देखते नहीं हो, कितनी साँसत होती है। तुम्हीं कौन बचे हुए हो। कुत्तों को भी मारते दया आती है। क्या हम कुत्तों से भी गये बीते हैं।

इतने में सदर फाटक पर शोर मचा। जिला-मैजिस्ट्रेट मिस्टर जिम सशस्त्र पुलिस के सिपाहियों और अफसरों के साथ आ पहुँचे थे। दारोगाजी ने अन्दर आते वक्त किवाड़ बन्द कर लिये थे, जिसमें कोई कैदी भागने न पाये। यह शोर सुनते ही चक्रधर समझ गया कि पुलिस आ गयी। बोले—अरे भाई, क्यों अपनी जान के दुश्मन हुए हो? बन्दूकें रख दो और फौरन् जाकर किवाड़ खोल दो। पुलिस आ गयी।

धन्नासिंह-कोई चिन्ता नहीं। हम भी इन लोगों का वारा-न्यारा किये डालते हैं। मरते ही हैं, तो दो चार को मार के मरें।

कैदियों ने फौरन् संगीने चढ़ायीं और सबसे पहले धन्नासिंह दारोगाजी पर झपटा। करीब था कि संगीन की नोंक उनके सीने में चुभे कि चक्रधर यह कहते हुए 'धन्नासिंह, ईश्वर के लिए.' दारोगाजी के सामने आकर खड़े हो गये। धन्नासिंह वार कर चुका