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कायाकल्प]
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मुझे वास्तव में इस संयम को बड़ी जरूरत थी, नहीं तो मेरे मन की चंचलता मुझे न जाने कहाँ ले जाती। प्रकृति सदैव हमारी कमी को पूरी करती रहती है, यह बात अब तक मेरी समझ में न पायी थी। अब तक मैं दूसरों का उपकार करने का स्वप्न देखा करता था। अब ज्ञात हुआ कि अपना उपकार ही दूसरों का उपकार है। जो अपना उपकार नहीं कर सकता, वह दूसरों का उपकार क्या करेगा। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, यहाँ बड़े आराम से हूँ और इस परीक्षा में पढ़ने से प्रसन्न हूँ। बाबूजी तो कुशल से हैं?

अहल्या––हाँ, आपको बराबर याद किया करते हैं। मेरे साथ वह भी आये हैं; पर यहाँ न याने पाये। अम्माँ और बाबूजी में कई महीनों से खटपट है। वह कहती है, बहुत दिन तो समाज को चिन्ता में दुबले हुए, अब आराम से घर बैठो, क्या तुम्हीं ने समाज का ठीका ले लिया है? बाबूजी कहते हैं, यह काम तो उसी दिन छोड़ूँगा, जिस दिन प्राण शरीर को छोड़ देगा। बेचारे बराबर दौड़ते रहते हैं। एक दिन भी आराम से बैठना नसीब नहीं होता। तार से बुलावे आते रहते हैं। फुरसत मिलती है, तो लिखते हैं। न-जाने ऐसी क्या हवा बदल गयी है कि नित्य कहीं-न-कहीं से उपद्रव की खबर आती रहती है। आजकल स्वास्थ्य भी बिगड़ गया है; पर आराम करने की तो उन्होंने कसम खा ली है। बूढे ख्वाजा महमूद से न-जाने किस बात पर अनबन हो गयी है। आपके चले जाने के बाद कई महीने तक खूब मेल रहा, लेकिन अब फिर वही हाल है।

अहल्या ने ये बातें महत्व को समझकर न कहीं बल्कि इसलिए कि वह चक्रधर का ध्यान अपनी तरफ से हटा देना चाहती थी। चक्रधर विरक्त से होकर बोले––दोनों आदमी फिर धर्मान्धता के चक्कर में पड़ गये होंगे। जब तक हम सच्चे धर्म का अर्थ न समझेगे, हमारी यही दशा रहेगी। मुश्किल यह है कि जिन महान् पुरुषों से अच्छी धर्मनिष्ठा की आशा की जाती है, वे अपने अशिक्षित भाइयों से भी बढ़कर उद्दण्ड हो जाते हैं। मैं तो नीति ही का धर्म समझता हूँ और सभी सम्प्रदायों की नीति एक-सी है। नगर अंतर है तो बहुत थोड़ा। हिन्द, मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, सभी सत्कर्म और सद्विचार की शिक्षा देते हैं। हमें कृष्ण, राम, ईसा मुहम्मद, बुद्ध सभी महात्माओं का समान आदर करना चाहिए। ये मानव जाति के निर्माता है। जो इसमें से किसी का अनादर करता है, या उनकी तुलना करने बैठता है, वह अपनी मूर्खता का परिचय देता है। बुरे हिन्दू से अच्छा मुसलमान उतना ही अच्छा है, जितना बुरे मुसलमान से अच्छा हिन्दू। देखना यह चाहिए कि वह कैसा आदमी है, न कि यह कि वह किस धर्म का आदमी है। संसार का भावी धर्म सत्य, न्याय और प्रेम के आधार पर बनेगा। हम अगर संसार में जीवित रहना है, तो अपने हृदय में इन्हीं भावों का सञ्चार करना पड़ेगा। मेरे घर का तो कोई समाचार न मिला होगा?

अहल्या––मिला क्यों नहीं, बाबूजी हाल ही में काशी गये। जगदीशपुर के साहब ने आपके पिताजी को ५०) मासिक बाँध दिया है इससे अब उनका वन का