पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/१६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७८
[कायाकल्प
 

मुन्शी-कहूँगा जी और बदकर। यह समझ लो कि तुम वहाँ हो गये। बस, मौका मिलने-भर को देर है। रानी साहब इतना मानती हैं कि जिसे चाहूँ, निकलवा दूं, जिसे चाहूँ रखवा दूं। दीवान साहब भी अब दूर ही से सलाम करते हैं। फिर मुझे अपने काम से काम है, किसी की शिकायत क्यों करूँ? मेरे लिए कोई रोक टोक नहीं है, मगर दीवान साहन वाप है तो क्या, बिला इत्तला कराये सामने नहीं जा सकते।

झिनकू-रानीनी का क्या पूछना, सचमुच रानी हैं। आज शहर भर में वाह-वाह हो रही है। बुढिया के राज में हकीम-डाक्टर लूटते थे, अब गुनियों की कदर है।

मुन्शी-पहुँचा नहीं कि सो काम छोड़कर दौड़ी हुई श्राकर खड़ी हो जाती है। क्या है लालाजी, क्या है लालाजी? जब तक रहता है, दिमाग चाट जाती है, दूसरों से बात नही करती। लल्लू को बहुत याद करती हैं। खोद खोदकर उन्ही को बातें पूछती हैं। सब्र करो, होली के दिन तुम्हारी नजर दिला दूंगा, मगर भाई, इतना याद रखो कि यहाँ पक्का गाना गाया और निकाले गये। 'तूम तनाना' की धुन मत देना।

इतने में महादेव नाम का एक बजाज सामने आया और दूर हो से सलाम करके वोला-मुन्शीनी, हजूर के मिजाज अच्छे तो हैं?

मुन्शीजी ने त्योरियाँ बदल कर कहा- हुजूर के मिजाज को फिक न करो, अपना मतलब कहो।

महादेव-हुजूर को सलाम करने आया था।

मुन्शी-अच्छा, सलाम।

महादेव-आप हमसे कुछ नाराज मालूम होते हैं। हमसे तो कोई ऐसी बात-

मुन्शी-बड़े आदमियों से मिलने जाया करो, तो तमीज से बात किया करो। मैं तुम्हें 'सेठजी' कहने के बदले 'अरे, 'ओ बनिये' कहूँ, तो तुम्हें बुरा लगेगा या नहीं?

महादेव-हाँ, हजूर, इतनी खता तो हो गयी, अब माफी दी जाय। नया माल आया है, हुकुम हो तो कुछ कपड़े भेजूं।

मुन्शी-फिर वही बनियेपन की बातें! कभी आज तक और भी पाये थे पूछने कि कपड़े चाहिए हजूर को? मैं वही हूँ, या कोई और अपना मतलब कहो साफ साफ।

महादेव-हजूर तो समझते ही हैं, मैं क्या कहूँ?

मुन्शी-अच्छा, तो सुनो लालाजी, घूस नहीं लेता, रिश्वत नहीं लेता, जब तहसीलदारी के जमाने ही में न लिया, तो अब क्या लूँगा। लड़की की शादी होनेवाली है, उसमें जितना कपड़ा लगेगा, वह तुम्हारे सिर। बोलो, मजूर हो तो आज ही नजर दिलवा दूं। साल-भर में एक लाख का माल बेचोगे, जो बेचने का शऊर होगा। हाँ, बुढिया रानी का जमाना नहीं है कि एक के चार लो। बस, रुपए में एक आना बहुत है। इससे ज्यादा लिया और गरदन नापी गयी।

महादेव-हजूर, खरचा छोड़कर दो पैसे रुपए ही दिला दें। आपके वसीले से जाकर भला ऐसी दगा करूँ।