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कायाकल्प]
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मुन्शी-श्राप रईसों के दिलबहलाव के लिए किस्से-कहानियाँ, चुटकुले लतीफे कह सकते हैं?

युवक-(हँसकर) आप तो मेरे साथ मजाक कर रहे हैं |

मुन्शी-जी नहीं, मनाक नहीं कर रहा हूँ, श्रापकी लियाकत का इम्तहान ले रहा हूँ। तो श्राप सिर्फ हिसाब करना जानते हैं और शायद अँगरेनी बोल और लिख लेते होंगे । मैं ऐसे आदमी की सिफारिश नहीं करता। आपकी उम्र होगी कोई २४ साल की। इतने दिनों में आपने सिर्फ हिसाव लगाना सीखा। हमारे यहाँ तो कितने ही श्रादमी छः महीने में ऐसे अच्छे मुनीव हो गये हैं कि बड़ी-बड़ी दूकाने सँभाल सकते हैं। आपके लिये यहॉ जगह नहीं है।

युवक चला गया, तो झिनकू ने कहा- मैया, तुमने वेचारे को बहुत बनाया। मारे सरम के कट गया होगा। कुछ उसके साहबी ठाट की परवा न की।

मुन्शी-उसका साहवी ठाट देखकर ही तो मेरे बदन में आग लग गयो। पाता तो श्रापको कुछ नहीं; पर ठाट ऐसा बनाया है, मानो खास विलायत से चले आ रहे है । मुझ पर बचा रोब जमाने चले थे। चार हरफ अँगरेजी पढ़ ली, तो समझ गये कि अब हम फाजिल हो गये | पूछो, जब आप बाजार से घेले का सौदा नहीं ला सकते, तो श्राप हिसाब-किताब क्या करेंगे।

यही बातें हो रही थी कि रानी मनोरमा की मोटर श्राकर द्वार पर खड़ी हो गयी। मुंशीजी नगे सिर, नगे पाँव दौड़े। जरा भी ठोकर खा जाते, तो फिर उठने का नाम न लेते । मनोरमा ने हाथ उठाकर कहा-दौदिए नहीं, दीड़िए नहीं। मैं आप ही के पास आयी हूँ; कहीं भागी नहीं जा रही हूँ। इस वक्त क्या हो रहा है ?

मुंशी-कुछ नहीं हुजूर, कुछ ईश्वर का भजन कर रहा हूँ।

मनोरमा-बहुत अच्छी बात है, ईश्वर को जरूर मिलाये रहिए, वक्त पर बहुत काम पाते हैं; कम-से-कम दुख दर्द में उनके नाम से कुछ सहारा तो हो ही जाता है। में आपको इस वक्त एक बड़ी खुशखबरी सुनाने आयी हूँ। बाबूजी कल यहाँ आ जायेंगे।

मुंशो-क्या लल्लू ?

मनोरमा-जी हाँ, सरकार ने उनकी मीयाद घटा दी है ।

इतना सुनना था कि मुन्शीजी वेतहाशा दौड़े और घर में जाकर हॉफते हुए निर्मला से बोले-सुनती हो, लल्लू फल पायेंगे । मनोरमा रानी दरवाजे पर खड़ी हैं ।

यह कहकर उलटे पाँव फिर द्वार पर श्रा पहुंचे।

मनोरमा-अम्माँजी क्या कर रही हैं, उनसे मिलने चलू।

निर्मला बैठी पाटा गूंघ रही थी। रसोई ने केवल एक मिट्टी के तेल की कुप्पी जल रही थी, वाकी सारा घर अधेरा पड़ा था । मुन्शीजी सदा लुटाऊ घे, जो कुछ पाते थे, बाहर ही बाहर उदा देते थे। घर की दशाज्यों की त्यों थी। निर्मला को रोने धोने से फुर-सत ही न मिलती थी कि घर को कुछ फिक करती। अब मुन्शोजी बड़े असमसस मे पड़े।