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[कायाकल्प
 

पाँच पृष्ठ लिख डाले। जब उसने उसे दुहराया, तो उसे ऐसा जान पड़ा कि मेरा लेख सहेली के लेख से अच्छा है। फिर भी उसे सम्पादक के पास भेजते हुए उसका जी डरता था कि कहीं अस्वीकृत न हो जाय। उसने दोनों लेखों को दो-तीन बार मिलाया और अन्त को तीसरे दिन भेज ही दिया। तीसरे दिन जवाब आया। लेख स्वीकृत हो गया था, फिर भेजने की प्रार्थना की गयी थी और शीघ्र ही पुरस्कार भेजने का वादा था। तीसरे दिन डाकिये ने एक रजिस्ट्री चिट्ठी लाकर दी। अहल्या ने खोला, तो १०) का नोट था। अहल्या फूली न समायी। उसे इस बात का सन्तोष-मय गर्व हुआ कि गृहस्थी में मैं भी मदद कर सकती हूँ। उसी दिन उसने एक दूसरा लेख लिखना शुरू किया, पर अबकी जरा देर लगी। तीसरे दिन लेख भेज दिया गया।

पूस का महीना लग गया। जोरों की सरदी पड़ने लगी। स्नान करते समय ऐसा मालूम होता था कि पानी काट खायगा, पर अभी तक चक्रधर जड़ावल न बनवा सके। एक दिन बादल हो आये और ठण्डी हवा चलने लगी। चक्रधर १० बजे रात को अछूतों की किसी सभा से लौट रहे थे, तो मारे सरदी के कलेजा काँप उठा। चाल तेज की, पर सरदी कम न हुई। तब दौड़ने लगे। घर के समीप पहुँच कर थक गये। सोचने लगे—अभी से यह हाल है भगवान्, तो रात कैसे कटेगी? और मैं तो किसी तरह काट भी लूँगा, अहल्या का क्या हाल होगा? इस बेचारी को मेरे कारण बड़ा कष्ट हो रहा है। सच पूछो, तो मेरे साथ विवाह करना इसके लिए कठिन तपस्या हो गयी। कल सबसे पहले कपड़ों की फिक्र करूँगा। यह सोचते हुए वह घर आये, तो देखा कि अहल्या अँगीठी में कोयले भरे ताप रही है। आज वह बहुत प्रसन्न दिखायी देती थी। रात को रोज रोटी और कोई साग खाया करते थे। आज अहल्या ने पूरियाँ पकायी थीं, और सालन भी कई प्रकार का था। खाने में बड़ा मजा आया। भोजन करके लेटे तो दिखायी दिया, चारपाई पर एक बहुत अच्छा कम्बल पड़ा हुआ है। विस्मित होकर पूछा—यह कम्बल कहाँ था?

अहल्या ने मुसकिराकर कहा—मेरे पास ही रखा था। अच्छा है कि नहीं?

चक्रधर—तुम्हारे पास कम्बल कहाँ था? सच बताओ, कहाँ मिला? २०) से कम का न होगा।

अहल्या—तुम मानते ही नहीं, तो क्या करूँ। अच्छा, तुम्हीं बताओ कहाँ था?

चक्रधर—मोल लिया होगा। सच बताओ, रुपए कहाँ थे?

अहल्या—तुम्हें आम खाने से मतलब है या पेड़ गिनने से?

चक्रधर—जब तक यह न मालूम हो जाय कि आम कहाँ से आये, तब तक मैं उनमें हाथ भी न लगाऊँ।

अहल्या—मैंने कुछ रुपए बचा रखे थे। आज कम्बल मँगवा लिया।

चक्रधर—मैंने तुम्हें इतने रुपए कब दिये कि खर्च करके बच जाते। कितने का है?