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[कायाकल्प
 


गुरुसेवक—हाँ बाँधकर रखेंगे।

अगर उम्र-भर में लौंगी को गुरुसेवक की कोई बात पसन्द आयी, तो उनका यही दुराग्रह-पूर्ण वाक्य था। लौंगी का हृदय पुलकित हो गया। इस वाक्य में उसे आत्मीयता हुई जान पड़ी। उसने जरा तेज होकर कहा—बाँधकर क्यों रखोगे? क्या तुम्हारी बेसाही हूँ?

गुरुसेवक—हाँ, बेसाही हो! मैंने नहीं बेसाहा, मेरे बाप ने तो बेसाहा है। बेसाही न होती, तो तुम तीस साल यहाँ रहतीं कैसे? कोई और आकर क्यों न रह गयी? दादाजी चाहते, तो एक दर्जन ब्याह कर सकते थे, कोड़ियों रखेलियाँ रख सकते थे। यह सब उन्होंने क्यों नहीं किया? जिस वक्त मेरी माता का स्वर्गवास हुआ, उस वक्त उनकी जवानी की उम्र थी, मगर उनका कट्टर-से-कट्टर शत्रु भी आज यह कहने का साहस नहीं कर सकता कि उनके आचरण खराब थे। यह तुम्हारी ही सेवा की जंजीर थी, जिसने उन्हें बाँध रखा। नहीं तो आज हम लोगों का कहीं पता न होता। मैं सत्य कहता हूँ, अगर तुमने घर के बाहर कदम निकाला, चाहे तो दुनिया मुझे बदनाम ही करे, मैं तुम्हारे पैर तोड़कर रख दूँगा। क्या तुम अपने मन की हो कि जो चाहोगी, करोगी और जहाँ चाहोगी जाओगी, और कोई न बोलेगा? तुम्हारे नाम के साथ मेरी और मेरे पूज्य बाप की इज्जत बँधी हुई है।

लौंगी के जी में आया कि गुरुसेवक के चरणों पर सिर रखकर रोऊँ और छाती से लगाकर कहूँ—बेटा, मैंने तो तुझे गोद में खेलाया है, तुझे छोड़कर भला मैं कहा जा सकती हूँ? लेकिन उसने क्रुद्ध भाव से कहा—यह तो अच्छी दिल्लगी हुई। यह मुझे बाँधकर रखेंगे!

गुरुसेवक तो झल्लाये हुए बाहर चले गये और लौंगी अपने कमरे में जाकर खूब रोई। गुरुसेवक क्या किसी महरी से कह सकते थे—हम तुम्हें बाँधकर रखेंगे? कभी नहीं, लेकिन अपनी स्त्री से वह यह बात कह सकते हैं, क्योंकि उसके साथ उनकी इज्जत बँधी हुई है। थोड़ी देर के बाद वह उठकर एक महरी से बोली—सुनती है रे, मेरे सिर में दर्द हो रहा है। जरा आकर दबा दे।

आज कई महीने के बाद लौंगी ने सिर दबाने का हुक्म दिया था। इधर उसे किसी से कुछ कहते हुए संकोच होता था कि कहीं यह टाल न जाय। नौकरों के दिल में उसके प्रति वही श्रद्धा थी, जो पहले थी। लौंगी ने स्वयं उनसे कुछ काम लेना छोड़ दिया था। इन झगड़ों की भनक भी नौकरों के कानों में पड़ गयी थी। उन्होंने अनुमान किया था कि गुरुसेवक ने लौंगी को किसी बात पर डाँटा है, इसलिए स्वभावतः उनकी सहानुभूति लौंगी के साथ हो गयी थी। वे आपस में इस विषय पर मनमानी टिप्पणियाँ कर रहे थे। महरी उसका हुक्म सुनते ही तेल लाकर उसका सिर दबाने लगो। उसे अपने मनोभावों को प्रकट करने के लिए यह अवसर बहुत ही उपयुक्त जान पड़ा। बोली—आज छोटे बाबू किस बात पर बिगड़ रहे थे मालकिन? कमरे के