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कायाकल्प]
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करने का समय नहीं और विश्राम करने का समय भी नहीं। बैठने का समय फिर आयेगा। आज या तो इस तपस्या का अन्त हो जायगा, या इस जीवन का ही। वह उठ खड़ा हुआ।

किसान ने कहा—क्या चल दिये भाई? चिलम विलम तो पी लो।

लेकिन शंखधर इसके पहले ही चल चुका था। वह कुछ नहीं देखता, कुछ नहीं सुनता, चुपचाप किसी अन्ध-शक्ति की भाँति चला जा रहा है। वसन्त का शीतल एवं सुगन्ध से लदा हुआ समीर पुत्र-वत्सला माता की भाँति वृक्षों को हिंडोले में झुला रहा है, नवजात पल्लव उसकी गोद में मुस्कराते और प्रसन्न हो होकर ठुमकते हैं, चिड़ियाँ उन्हें गा-गाकर लोरियाँ सुना रही हैं, सूर्य की स्वर्णमयी किरणें उनका चुम्बन कर रही हैं। सारी प्रकृति वात्सल्य के रंग में डूबी हुई है, केवल एक ही प्राणी अभागा है, जिसपर इस प्रकृति वात्सल्य का जरा भी अवसर नहीं। वह शंखधर है।

शंखधर सोच रहा है, अब की फिर कहीं रास्ता भूला, तो सर्वनाश ही हो जायगा। तब वह समझ जायगा—मेरा जीवन रोने ही के लिए बनाया गया है। रोदन-अनन्त रोदन ही उसका काम है। अच्छा, कहीं पिताजी मिल गये? उसके सम्मुख वह जा भी सकेगा या नहीं? वह उसे देखकर क्रुद्ध तो न होंगे? जिसे दिल से भुला देने के लिए ही उन्होंने यह तपस्या व्रत लिया है, उसे सामने देखकर क्या वह प्रसन्न होंगे?

अच्छा, वह उनसे क्या कहेगा? अवश्य ही उनसे घर चलने का अनुरोध करेगा। क्या माता की दारुण-दशा पर उन्हें दया न आयेगी? क्या जब वह सुनेंगे कि रानी अम्माँ गलकर काँटा हो गयी हैं, नानाजी रो रहे हैं, दादीजी रात-दिन रोया करती हैं, तो क्या उनका हृदय द्रवित न हो जायगा। वह हृदय, जो पर दुःख से पीड़ित होता है, क्या अपने घरवालों के दुःख से दुखी न होगा? जब वह नयनों में अश्रु जल भरे उनके चरणों पर गिर कर कहेगा कि अब घर चलिए, तो क्या उन्हें उस पर दया न आयेगी? अम्माँ कहती हैं, वह मुझे बहुत प्यार करते थे; क्या अपने प्यारे पुत्र की यह दयनीय दशा देखकर उनका हृदय मोम न हो जायगा? होगा क्यों नहीं? यह जायँगे कैसे नहीं? वह उन्हें खींचकर ले जायगा। अगर वह उसके साथ न आयेंगे, तो वह भी लौटकर घर न आयेगा, उन्हीं के साथ रहेगा, उनकी ही सेवा में रहकर अपना जीवन सफल करेगा।

इन्हीं कल्पनाओं में डूबा हुआ शंखधर धावा मारे चला जा रहा था। रास्ते में जो मिलता, उससे वह पूछता, साईंगंज कितनी दूर है? जवाब मिलता—बस, साईंगंज ही है। लेकिन जब आगे वाली बस्ती में पहुँचकर पूछता—क्या यही साईंगंज है, तो फिर यही जवाब मिलता—बस, आगे साईंगंज है। आखिर दोपहर होते-होते उसे दूर से एक मन्दिर का कलश दिखायी दिया। एक चरवाहे से पूछा—यह कौन गाँव है? उसने कहा—साईंगंज! साईंगंज आ गया! वह गाँव, जहाँ उसकी किस्मत का फैसला होने वाला था, जहाँ इस बात का निश्चय होगा कि वह राजा बनकर राज्य करेगा या रंक