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कायाकल्प]
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विरक्त होकर यहाँ प्रायश्चित्त करने के इरादे से आयी थी; पर वह विपत्ति उसके साथ यहाँ भी आयी। वहाँ उसे घर-गृहस्थी से कोई मतलब न था, यहाँ वह विपत्ति भी सिर पड़ी। जिन वस्तुओं से उसे वहाँ जरा भी मोह न था, उन्हीं के खो जाने की खबर हो जाने पर उसे दुःख होता था। वह माया को जीतना चाहती थी, माया ने उसी को परास्त कर दिया। सम्पत्ति से गला छुड़ाना चाहती थी; पर सम्पत्ति उससे ओर चिमट गयी थी। वहाँ वह कुछ देर शान्ति से बैठ सकती थो, कुछ देर हँस-बालकर जी बहला लेती थी। किसी के ताने मेहने न सुनने पड़ते थे, यहाँ निर्मला बाणों से छेदती और घाव पर नमक छिड़कती रहती थी। बहू के कारण वह अपने पुत्र से वंचित हुई। बहू ही के कारण पोता भी हाथ से गया। ऐसी बहू को वह पान-फूल से पूज न सकती थी। सम्पत्ति लेकर वह क्या करे? चाटे? पुत्र और पौत्र के बदले में इस अतुल धन का क्या मूल्य था? भोजन वह अब भी अपने हाथों ही पकाती थी। अहल्या के साथ जो महाराजिनें आयी थीं, उनका पकाया हुआ भोजन वह ग्रहण न कर सकती थी। अहल्या से भी वह छूत मानती थी। इन दिनों मंगला भी आयी हुई थी। उसका जी चाहता था कि यहाँ की सारी चीजें समेट ले जाऊँ। अहल्या अपनी चीजों को तीन-तेरह न होने देना चाहती थी। इससे ननद-भावज में कभी-कभी खटपट हो जाती थी।

बर्तनों में कई बड़े बड़े कण्डाल भी थे। एक कण्डाल इतना बड़ा था कि उसमें ढाई सौ कलसे पानी आ जाता था। मंगला ने एक दिन यह कण्डाल अपने घर भेजवा दिया। कई दिन बाद अहल्या को यह खबर मिली, तो उसने जाकर सास से पूछा—अम्माँजी, वह बड़ा कण्डाल कहाँ है, दिखायी नहीं देता?

निर्मला ने कहा—बाबा, मैं नहीं जानती, कैसा कण्डाल था। घर में है, तो कहाँ जा सकता है?

अहल्या—जब घर में हो तब न?

निर्मला—घर में से कहाँ गायब हो जायगा?

अहल्या—घर की चीज घर के आदमियों के सिवा और कौन छू सकता है?

निर्मला—तो क्या इस घर में सब चोर ही बसते है।

अहल्या—यह तो मैं नहीं कहती; लेकिन चीज का पता तो लगना ही चाहिए।

निर्मला—तुम चीजें लादकर ले जाओगो, तुम्हीं पता लगाती फिरो। यहाँ चीजों को लेकर क्या करना है? इन चीजों को देखकर मेरी तो आँखें फटती हैं। इन्हीं के लिए तो तुमने मेरे बच्चे को बनवास दे दिया। इन्हीं के पीछे अपने बेटे से हाथ धो बैठी। तुम्हें ये चीजें प्यारी होंगी। मुझे तो नहीं प्यारी हैं।

बात कड़वी थी; पर यथार्य थी। अगर धन-मद ने अहल्या का बुद्धि पर परदा न डाल दिया होता, तो आज उसे क्यों यह दिन देखना पड़ता? दरिद्र रहकर भी सुखी होती। मोह ने उसका सर्वनाश कर दिया। फिर भी वह मोह को गले लगाये हुए है। नैहर में उसकी लायी हुई चीज अपनी न थी, सब कुछ अपना होते हुए भी उसका कुछ