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कायाकल्प]
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गोरी फौज थी, काली फौज थी, रियासत की फौज थी। फौजी-बैंड था, कोतल घोड़े, मंजे हुए हाथी, फूलों की सवाँरी हुई सवारी गाड़ियाँ, सुन्दर पालकियाँ—इतनी जमा की गयी थीं कि शाम से घड़ी रात तक उनका ताँता ही न टूटे। बैंड से लेकर डफले और नृसिंहे तक सभी प्रकार के बाजे थे। सैकड़ों ही विमान सजाये गये थे और फुलवारियों की तो गिनती ही नहीं थी। सारी रात द्वार पर चहल पहल रही और सारी रात राजा साहब सजावट का प्रबन्ध करने में व्यस्त रहे। मनोरमा कई बार उनके दीवानखाने में आयी और उन्हें वहाँ न देखकर लौट गयी। उसके जी में बार-बार आता था कि बाहर ही चलकर राजा साहब से अनुनय-विनय करूँ; लेकिन भय यही था कि कहीं वह सबके सामने बक झक न करने लगें, उसे कुछ कह न बैठें। जो अपने होश मे नहीं; उसे किसकी लज्जा और किसका संकोच! आखिर, जब इस तरह जी न माना, तो वह द्वार पर जाकर खड़ी हो गयी कि शायद राजा साहब उसे देखकर उसकी तरफ आयें; लेकिन उसे देखकर भी राजा साहब उसकी ओर न आये; बल्कि और दूर निकल गये।

सारे शहर मे इस जुलूस और इस विवाह का उपहास हो रहा था, नौकर-चाकर तक आपस में हँसी उड़ाते थे, राजा साहब की चुटकियाँ लेते थे, अपनी धुन में मत्त राजा साहब को कुछ न सूझता था, कुछ न सुनायी देता था। सारी रात बीत गयी और मनोरमा को कुछ कहने का अवसर न मिला। तब वह अपनी कोठरी में लौट आयी और ऐसा फूट-फूटकर रोयी, मानो उसका कलेजा बाहर निकल पड़ेगा। उसे आज बीस वर्ष पहले की बात याद आयी, जब उसने राजा से विवाह के पहले कहा था—मुझे आपसे प्रेम नहीं है, और न हो सकता है। उसने अपने मनोभावों के साथ कितना अन्याय किया था। आज वह बड़ी खुशी से राजा साहब की रक्षा के लिए अपना बलिदान कर देगी। इसे वह अपना धन्य भाग्य समझेगी। यह उस प्रखर प्रेम का प्रसाद है, जिसका उसने १५ वर्ष तक आनन्द उठाया और जिसनी एक-एक बात उसके हृदय पर अंकित हो गयी थी। उन अङ्कित चिह्नों को कौन उसके हृदय से मिटा सकता है? निष्ठुरता में इतनी शक्ति नहीं, अपमान में इतनी शक्ति! प्रेम अमर है; अमिट है।

दूसरे दिन बरात निकलने से पहले मनोरमा फिर राजा साहब के पास जाने को तैयार हुई, लेकिन कमरे से निकली ही थी कि दो हथियार बन्द सिपाहियों ने उसे रोका।

रानी ने डाँटकर कहा—हट जाओ, नमकहरामों! मैंने ही तुम्हें नौकर रखा और तुम मुझसे गुस्ताखी करते हो?

एक सिपाही बोला—हजूर के हुक्म के ताबेदार हैं, क्या करें? महाराजा साहब का हुक्म है कि हजूर इस भवन से बाहर न निकलने पायें। हमारा क्या अपराध है, सरकार?

मनोरमा—तुम्हें किस ने यह आज्ञा दी है?