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कायाकल्प]
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देवप्रिया ने फिर कहा—मैं भी आप से कुछ सीखूँगी।

रामप्रिया अभी तक उसकी मुख छवि निहारने में मग्न थी। अब की भी कुछ न सुन सकी?

देवप्रिया फिर बोली—आपको मेरे साथ बहुत परिश्रम न करना पड़ेगा। थोड़ा बहुत जानती भी हूँ।

यह कहकर उसने फिर वीणा उठा ली और यह गीत गाने लगी—

प्रभु के दर्शन कैसे पाऊँ?
बनकर सरस-सुमन को लतिका, पद कमलों से लग जाऊँ,
या तेरे मन-मन्दिर की हरि, प्रेम-पुजारिन बन जाऊँ।
प्रभु के दर्शन कैसे पाऊँ?

आह! यही गीत था, जो रामप्रिया ने कितनी बार देवप्रिया को गाते सुना था, वही स्वर था, वही माधुर्य था, वही लोच था, वही हृदय मे चुभानेवाली तान थी। रामप्रिया ने भयातुर नेत्रों से देवप्रिया की ओर देखा और मूर्छित हो गयी। देवप्रिया को भी अपनी आँखों के सामने एक परदा-सा गिरता हुआ मालूम हुआ। उसकी आँखें आपही आप झपकने लगीं। एक क्षण और, सारा रहस्य खुल जायगा! कदाचित कायाकल्प का आवरण हट जाय और फिर न जाने क्या हो! वह रामप्रिया को उसी दशा में छोड़कर इस तरह अपने भवन की ओर चली, मानो कोई उसे दौड़ा रहा हो।

मनोरमा को ज्योंही एक लौंडी से रामप्रिया के मूर्च्छित हो जाने की खबर मिली, वह तुरन्त रामप्रिया के पास आयी और घण्टों की दौड़-दूप के बाद कहीं रामप्रिया ने आँखें खोलीं। मनोरमा को खड़ी देखकर वह फिर सहम उठी और सशंक दृष्टि से चारों ओर देखकर उठ बैठी।

मनोरमा ने कहा—आपको एकाएक यह क्या हो गया? अभी ती बहूजी यहाँ बैठी थीं।

रामप्रिया ने मनोरमा के कान के पास मुँह ले जाकर कहा—कुछ कहते नहीं बनता बहन! मालूम नहीं आँखों को धोखा हो रहा है, या क्या बात है। बहू की सूरत बिलकुल देवप्रिया बहन से मिलती है। रत्ती भर भी फर्क नहीं है।

मनोरमा—कुछ-कुछ मिलती तो है, मगर इससे क्या? एक ही सूरत के दो आदमी क्या नहीं होते?

रामप्रिया—नहीं मनोरमा, बिलकुल वही सूरत है। रंग-ढग, बोल-चाल सब वही है। गीत भी इसने वही गाया, जो देवप्रिया बहन गाया करती थीं। बिल्कुल यही स्वर था, यही आवाज। अरे बहन, तुमसे क्या कहूँ, आँखों में वही मुस्कुराहट है, तिल और मसों में भी फर्क नहीं। तुमने देवप्रिया को जवानी में नहीं देखा। मेरी आँखों में तो आज भी उनकी यह मोहिनी छवि फिर रही है। ऐसा मालूम होता है कि बहन स्वयं कहीं से आ गयी हैं। क्या रहस्य है, कह नहीं सकती; पर यह वही देवप्रिया हैं, इसमें रत्ती भर