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[कायाकल्प
 

इसमें भयकर रहस्य है, नोरा, मैंने अबकी शंखधर को देखा, तो चौंक पड़ा। सच कहता हूँ, उसी वक्त मेरे रोयें खड़े हो गये।

मनोरमा—आश्चर्य तो मुझे भी हो रहा है। रानी रामप्रिया आयीं थीं। वह कहती थीं, बहू की सूरत रानी देवप्रिया से बिलकुल मिलती है। वह भी बहू को देखकर विस्मित रह गयी थीं।

राजा ने घबराकर कहा—रामप्रिया ने मुझसे वह बात नहीं कही, नोरा। अब कुशल नहीं है। मैं तुमसे कहता हूँ नोरा, मेरी बात को यथार्थ समझो। अब कुशल नहीं है। कोई भारी दुर्घटना होनेवाली है। हाँ! विधाता, इससे तो अच्छा था कि मैं निस्सन्तान ही रहता।

राजा साहब ने विकल होकर दोनों हाथों से सिर पकड़ लिया और चिन्ता में डूब गये। एक क्षण के बाद मानो मन ही मन यह निश्चय करके, कि अमुक दशा में उन्हें क्या करना होगा, अत्यन्त स्नेह करुण शब्दों में मनोरमा से बोले—क्यों नोरा, एक बात तुमसे पूछूँ, बुरा तो न मानोगी? मेरे मन में कभी कभी यह प्रश्न हुआ करता है कि तुमने मुझसे क्यों विवाह किया? उस वक्त भी मेरी अवस्था ढल चुकी थी। धन का इच्छुक मैंने तुम्हें कभी नहीं पाया। जिन वस्तुओं पर अन्य स्त्रियाँ प्राण देती हैं, उनकी ओर मैंने तुम्हारी रुचि कभी नहीं देखी। क्या वह केवल ईश्वरीय प्रेरणा थी, जिसके द्वारा पूर्व-पुण्य का उपहार दिया गया हो?

मनोरमा ने मुस्कराकर कहा—दण्ड कहिए।

राजा—नहीं नोरा, मैंने जीवन में जो कुछ सुख और स्वाद आया, वह तुम्हारे स्नेह और माधुर्य में आया। यह भाग्य की निर्दय क्रीड़ा है कि जिसे मैं अपना सुख-सर्वस्व समझता था, उसपर सबसे अधिक अन्याय किया, किन्तु अब मुझे अपने अन्याय पर दुख के बदले एक प्रकार का सन्तोष हो रहा है। वह परीक्षा थी, जिसने तुम्हारे सतीत्व को और भी उज्ज्वल कर दिया, जिसने तुम्हारे हृदय की उस अपार कोमलता का परिचय दे दिया, जो कठोर होना नहीं जानती, जो कञ्चन की भाँति तपने पर और भी विशुद्ध एवं उज्ज्वल हो जाती है। इस परीक्षा के बिना तुम्हारे ये गुण छिपे रह जाते। मैंने तुम्हारे साथ जो जो नीचताएँ कीं, वे किसी दूसरी स्त्री में शत्रुता के भाव उत्पन्न कर देती। वह मानसिक वेदना, वह अपमान, वह दुर्जनता दूसरा कौन सहता और सहकर हृदय में मैल न आने देता? इसका बदला मैं तुम्हें क्या दे सकता हूँ?

मनोरमा—स्त्री क्या बदले ही के लिए पुरुष की सेवा करती है?

राजा—इस विषय को और न बढ़ाओ मनोरमा, नहीं तो कदाचित् तुम्हें मेरे मुँह से अपनी अन्य बहनों के विषय में अप्रिय सत्य सुनना पड़ जाय। मेरे उस प्रश्न का उत्तर दो, जो अभी मैने तुमसे किया था। वह कौन सी बात थी, जिसने तुम्हें मुझसे विवाह करने की प्रेरणा की?

मनोरमा—बता दूँ! आप हँसियेगा तो नहीं? मैं रानी बनना चाहती थी। मैंने