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[कायाकल्प
 

चक्रधर—तो तुम्हें विश्वास है कि मैं जो कुछ कहूँगा और करूँगा, वह तुम्हारे ही भले के लिए होगा?

चौधरी—मालिक, तुम्हारे ऊपर विश्वास न करेंगे, तो और किस पर करेंगे। लेकिन इतना समझ लीजिए कि हम और सब कर सकते हैं, यहाँ नहीं रह सकते। यह देखिए (पीठ दिखाकर), कोड़े खाकर यहाँ किसी तरह न रहूँगा।

चक्रधर इस भीड़ से निकल कर सीधे राजा साहब के पास आये और बोले—महाराज, मैं आपसे कुछ विनय करना चाहता हूँ।

राजा साहब ने त्योरियाँ बदलकर कहा—मैं इस वक्त कुछ नहीं सुनना चाहता।

चक्रधर—आप कुछ न सुनेंगे, तो पछतायेंगे।

राजा—मैं इन सबों को गोली मार दूँगा।

चक्रधर—दीन प्रजा के रक्त से राजतिलक लगाना किसी राजा के लिए मंगलकारी नहीं हो सकता। प्रजा का आशीर्वाद ही राज्य की सबसे बड़ी शक्ति है। मैं आप का सेवक हूँ, आपका शुभचिन्तक हूँ, इसी लिए आपकी सेवा में आया हूँ। मुझे मालूम है कि आपके हृदय में कितनी दया है और प्रजा से आपको कितना स्नेह है। यह सारा तूफान अयोग्य कर्मचारियों का खड़ा किया हुआ है। उन्हीं के कारण आज आप उन लोगों के रक्त के प्यासे बन गये हैं, जो आपकी दया और कृपा के प्यासे हैं। ये सभी आदमी इस वक्त झल्लाये हुए हैं। गोली चलाकर आप उनके प्राण ले सकते हैं, लेकिन उनका रक्त केवल इसी बाड़े में न सूखेगा, यह सारा विस्तृत कैंप उस रक्त से सिंच जायगा, उसकी लहरों के झोंके से यह विशाल मण्डप उखड़ जायगा और यह आकाश में फहराती हुई ध्वजा भूमि पर गिर पड़ेगी। अभिषेक का दिन दान और दया का है, रक्तपात का नहीं। इस शुभ अवसर पर एक हत्या भी हुई, तो वह सहस्रों रूप धारण करके ऐसा भयंकर अभिनय दिखायेगी कि सारी रियासत में हाहाकार मच जायगा।

राजा साहब अपनी टेक पर अड़ना जानते थे, किन्तु इस समय उनका दिल काँप उठा। वही प्राणी, जो दिन-भर गालियाँ बकता है, प्रातः काल कोई मिथ्या शब्द मुँह से नहीं निकलने देता। वही दूकानदार, जो दिन भर टेनी मारता है, प्रातः काल ग्राहक से मोल जोल तक नहीं करता। शुभ मुहूर्त पर हमारी मनोवृत्तियाँ धार्मिक हो जाती हैं। राजा साहब कुछ नरम होकर बोले—मैं खुद नहीं चाहता कि मेरी तरफ से किसी पर अत्याचार किया जाय, लेकिन इसके साथ ही यह भी नहीं चाहता कि प्रजा मेरे सिर पर चढ जाय। इन लोगों को अगर कोई शिकायत थी, तो इन्हें आकर मुझसे कहना चाहिए था। अगर मैं न सुनता, तो इन्हें अख्तियार था, जो चाहते करते, पर मुझसे न कहकर इन लोगों ने हेकड़ी करनी शुरू की, रात घोड़ा को घास नहीं दी और इस वक्त भागे जाते हैं। मैं यह घोर अपमान नहीं सह सकता।

चक्रधर—आपने इन लोगों को अपने पास आने का अवसर कब दिया? आपके द्वारपाल इन्हें दूर ही से भगा देते थे। आपको मालूम है कि इन गरीबों को एक सप्ताह