पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/४०

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सभी परस्पर सम्बन्धों की सम्पूर्णता को वस्तुगत रूप से ध्यान में रख कर ही, और फलतः समाज के विकास की वस्तुगत अवस्था को ध्यान में रख कर ही, साथ ही उस समाज से दूसरे समाजों के परस्पर संबंधों को ध्यान में रख कर ही, अग्रसर वर्ग की सही कार्यनीति का आधार मिल सकता है। साथ ही सभी वर्गों और देशों को जड़ रूप में नहीं वरन् गतिशील रूप में देखना चाहिए, अर्थात् वे स्थिर नहीं हैं वरन् गतिशील हैं ( उनकी गति के नियम प्रत्येक वर्ग के अस्तित्व की आर्थिक परिस्थितियों से निश्चित होते हैं)। इसके बाद इस गति को भूतकालीन दृष्टिकोण से नहीं, वरन् भविष्य के दृष्टिकोण से भी देखना चाहिए। उसे “विकासवादियों" की निम्न धारणा के अनुसार ही नहीं, जिन्हें केवल धीमे परिवर्तन दिखाई देते हैं, वरन् द्वंद्ववादी दृष्टिकोण से देखना चाहिए। मार्क्स ने एंगेल्स को लिखा था: इस कोटि की महान् प्रगति में बीस वर्ष एक दिन से अधिक नहीं हैं - अतएव आगे चलकर ऐसे दिन आ सकते हैं जो बीस-बीस वर्षों के बराबर हों।" (“पत्र-व्यवहार', खंड ३, पृष्ठ १२७ )¹³ प्रगति की हर मंजिल में, हर क्षण , सर्वहारा वर्ग की कार्यनीति को मानव-इतिहास की वस्तुगत और अनिवार्य गतिशीलता (द्वन्द्ववाद ) को ध्यान में रखना चाहिए। उसे एक ओर राजनीतिक शिथिलता के दिनों में या उन दिनों में जब नामचार के "शान्तिपूर्ण" विकासपथ पर “नौ दिन चले अढ़ाई कोस" की प्रगति हो रही हो, अग्रसर वर्ग की शक्ति , वर्ग-चेतना , और संघर्ष-सामर्थ्य को बढ़ाना चाहिए। दूसरी ओर इस वर्ग के आन्दोलन के "अन्तिम ध्येय" की दिशा में इस कार्य का संचालन करना चाहिये और उसमें वह शक्ति उत्पन्न करनी चाहिए जिससे कि उन महान् दिनों में “जो बीस-बीस वर्षों के बराबर हों", वह महान् कार्यों को प्रत्यक्ष रूप से सम्पन्न कर सके। इस संबंध में मार्क्स के दो तर्क विशेष महत्व के हैं। इनमें से एक 'दर्शनशास्त्र की निर्धनता' में है और उसका संबंध सर्वहारा वर्ग के आर्थिक संघर्ष और आर्थिक संगठनों से है ; दूसरा , 'कम्युनिस्ट घोषणापत्र' में है और उसका संबंध सर्वहारा वर्ग के राजनीतिक कार्यों से है। पहला इस प्रकार है : "बड़े पैमाने के उद्योग-धंधों से एक ही जगह ऐसे आदमियों की भीड़ जुट

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