पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१५७

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१५४ पूंजीवादी उत्पादन पैसा बचाना और लालच-ये तीन उसके मुख्य गुण होते हैं, और उसका सारा पर्यशास्त्र यह होता है कि ज्यादा बेचो और बहुत कम खरीदो।। अपसंचित धन के इस सामान्य स्वरूप के साथ-साथ हम सोने और चांदी की बनी हुई वस्तुओं के संग्रह के रूप में उसका कलापूर्ण स्वरूप भी पाते हैं। यह प पूंजीवादी समाज के धन के साथ-साथ बढ़ता जाता है। विदेरो ने कहा है : “Soyons riches ou paralsons riches" ("हमें धनी होना चाहिए या धनी प्रतीत होना चाहिए")। इस प्रकार, एक तरफ तो सोने और चांदी द्वारा मुद्रा के रूप में जो कार्य किये जाते हैं, उनसे सम्बन्ध न रखने वाली, सोने और चांदी के लिए एक लगातार बढ़ने वाली मंग पैदा हो जाती है, और, दूसरी तरफ़, मुद्रा की पूर्ति के लिए एक गुप्त बोत तैयार हो जाता है, जिसका मुख्यतया संकटों और सामाजिक उपायों के समय सहारा लिया जाता है। पात्विक परिचलन की प्रर्य-व्यवस्था में अपसंचय नाना प्रकार के कार्य करता है। उसका पहला कार्य सोने और चांदी के सिक्कों के चलन पर लागू होने वाली परिस्थितियों से उत्पन्न होता है। हम देख चुके हैं कि किस तरह मालों के परिचलन के विस्तार एवं तीव्रता तथा उनके दामों में लगातार पाते रहने वाले उतार-चढ़ाव के साथ-साथ चालू मुद्रा की मात्रा में भी निरन्तर ज्वार-भाटा पाता रहता है। प्रतएव, चालू मुद्रा की राशि में फैलने और सिकुड़ जाने की क्षमता होनी चाहिए। एक समय मुद्रा को भाकर्षित किया जाना चाहिए कि वह पाकर चालू सिक्कों की तरह काम करे, दूसरे समय चालू सिक्कों को धकेलकर बाहर कर देना चाहिए, ताकि वे फिर न्यूनाधिक निश्चल मुद्रा की तरह काम करने लगे। इसलिए कि वास्तव में चालू मुद्रा की राशि परिचलन की मुद्रा सपाने की शक्ति को सदा पूरी तरह तृप्त करती रहे, तो उसके लिए यह जरूरी है कि सिक्के का काम करने के लिए जितने सोने-चांदी की जरूरत है, देश में उससे सदा अधिक मात्रा में सोना-चांदी हो। यह शर्त मुद्रा के अपसंचित धन का रूप ले लेने से पूरी होती है। ये सुरमित मुद्राशय परिचलन में मुद्रा भेजने और वहां से मुद्रा वापिस लींचने की नालियों का काम करते हैं, और इस तरह मुद्रा कमी तट-प्लावन नहीं करने पाती। 1 “Accrescere quanto più si può il numero de'venditori d'ogni merce, dimi- nuere quanto più si può il numero dei compratori, questi sono i cardini sui quali si raggirano tutte le operazioni di economia politica" ["हर तरह की वाणिज्य- वस्तुओं के बेचने वालों की संख्या को अधिक से अधिक बढ़ा देना और खरीदारों की संख्या को अधिक से अधिक कम कर देना- इन्हीं दो कुलाबों के सहारे अर्थशास्त्र की सारी क्रियाएं चलती है"] (Verri, उप० पु०, पृ० ५२)। ३"राष्ट्र का व्यापार चलाने के लिए विशिष्ट मुद्रा की एक निश्चित रकम की प्रावश्यकता होती है, जो बदलती रहती है और हमारी परिस्थितियों के अनुसार कभी ज्यादा होती है और कभी कम... मुद्रा का यह ज्वार मौर भाटा अपने पाप ही भाता-जाता रहता है और अपने पाप ही संतुलन प्राप्त कर लेता है, उसके लिए राजनीतिज्ञों की किसी प्रकार की सहायता की पावश्यकता नहीं होती... ये डोल बारी-बारी से काम करते हैं : जब मुद्रा की कमी होती है, तब सोने-चांदी के कलधौत डाल दिये जाते हैं। जब सोने-चांदी की कमी होती है, तब मुद्रा गला दी जाती है।" (Sir D. North, उप० पु०, Postscript [पुनश्च], पृ. ३) जान स्टुअर्ट मिल, जो बहुत दिनों तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्मचारी रहे थे, इस बात की पुष्टि .