पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्रम-शक्ति का क्रय और विक्रय १९७ . उत्पादन के लिए भाषे दिन का मम पावश्यक होता है। श्रम की यह मात्रा ही एक दिन की भम शक्ति का मूल्य होती है, या यूं कहिये कि मन की यह मात्राही रोजाना पुनरुत्पादित होने बाली श्रमशक्ति का मूल्य होती है। यदि भाषे दिन का प्रोसत सामाजिक श्रम तीन शिलिंग में निहित होता हो, तो एक दिन की भम-शक्ति के मूल्य के अनुसार उसका दाम ३ शिलिंग होगा। इसलिए अगर उसका मालिक उसे तीन शिलिंग रोजाना में बेचना चाहे, तो उसका विकी- बाम उसके मूल्य के बराबर होगा। और हम वो कुछ मानकर चल रहे हैं, उसके मुताबिक हमारा मित्र पन्नासेठ, बो अपनी तीन शिलिंग की रकम को पूंजी में बदलने पर तुला हुमा है, यह मूल्य प्रदा कर देता है। की निम्नतम सीमा उन मालों के मूल्य से निर्धारित होती है, जिनकी रोखाना पूर्ति के प्रभाव में मजदूर अपने शरीर में काम करने का बल फिर से नहीं पैरा कर सकता। यानी अम-शक्ति के मूल्य की निम्नतम सीमा जीवन-निर्वाह के उन साधनों के निर्धारित होती है, जो शारीरिक दृष्टि से मजदूर के लिए अनिवार्य होते हैं। यदि श्रम-शक्ति का दाम इस निम्नतम सीमा पर पहुंच जाता है, तो वह उसके मूल्य से कम हो जाता है, क्योंकि ऐसी हालत में श्रम-शक्ति को केवल पंगु अवस्था में ही कायम रखा तथा विकसित किया जा सकता है। लेकिन प्रत्येक माल का मूल्य तो सामान्य श्रेणी का माल तैयार करने में खर्च होने वाले प्रावश्यक भन-काल द्वारा निर्धारित होता है। अम-शक्ति का मूल्य निर्धारित करने का यह तरीका परिस्थितियों के कारण अनिवार्य हो जाता है। उसे एक कूर तरीका बताना और रोस्सी की तरह रोना-पीटना बहुत सस्ती किस्म की भावुकता है। रोस्सी ने कहा है कि "श्रम करने की क्षमता ( puissance de travall) को उत्पादन की क्रिया के दौरान में मजबूर के जीवन-निर्वाह के साधनों से अलग करके देखना कल्पना-सृष्टि (etre de ralson) देखने के समान है। जब हम श्रम की या श्रम करने की ममता की बात करते हैं, तब हम मजदूर के साथ-साथ उसके जीवन-निर्वाह के साधनों की, मजदूर और उसकी मजदूरी की भी बात करते हैं। जब हम पाचन शक्ति की बात करते हैं, तब हम पाचन-क्रिया की बात नहीं करते। उसी प्रकार, जब हम श्रम-शक्ति की बात करते हैं, तब हम श्रम की बात नहीं करते। पाचन क्रिया के लिए अच्छे पेट के अलावा भी कुछ चीजों की पावश्यकता होती है। जब हम मम करने की क्षमता की बात करते हैं, तब हम उसे जीवन-निर्वाह के प्रावश्यक साधनों से अलग नहीं कर देते। इसके विपरीत, उन्हीं का मूल्य श्रम-शक्ति के मूल्य में व्यक्त होता है। यदि मजदूर की श्रम करने की क्षमता विना बिके रह जाती है, तो उससे मजदूर को कोई फायदा नहीं पहुंचता। बल्कि तब उसे यह बात बहुत प्रसारेगी और प्रकृति द्वारा लादी गयी स्यावती और क्रूरता प्रतीत होगी कि उसकी इस क्षमता के उत्पादन में जीवन-निर्वाह के साधनों की एक निश्चित मात्रा हुई है और भागे भी वह उसके पुनरुत्पादन में खर्च होती जायेगी। तब वह सिस्मॉबी की इस बात से सहमत होगा कि "श्रम करने की क्षमता... यदि विकती नहीं, तो कुछ भी नहीं है। माल के रूप में श्रमशक्ति की विचित्र प्रकृति का एक परिणाम यह होता है कि प्राहक और विनता के बीच में करार हो जाने पर भी प्रम-शक्ति का उपयोग-मूल्य प्राहक के हाथ में 1 119

  • Rossi, “Cours d'Econ. Polit.", Bruxelles, 1842, q. 2001

Sismondi, "Nouv. Princ. etc.", ग्रंथ १, पृ० ११२।