पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२०७

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२०४ पूंजीवादी उत्पादन विषय-वस्तु मानो पहले किये गये किसी मम की छलनी में से छनकर हमें मिली हो, तो हम उसे कच्चा माल कहते हैं। इसकी मिसाल वह बनिन है, जो पृथ्वी के गर्भ से निकाला जा चुका है और अब घुलने के लिए तैयार है। हर प्रकार का कच्चा माल मम की विषय-वस्तु होता है, लेकिन मन की प्रत्येक विषय-वस्तु कच्चा माल नहीं होती। वह कच्चा माल तभी बन सकती है, जब उसमें मम द्वारा कुछ परिवर्तन कर दिया गया हो। मन का पोवार एक ऐसी वस्तु या वस्तुओं का एक ऐसा संश्लेष होता है, जिसे मजदूर अपने और अपने मन की विषय-वस्तु के बीच में जगह देता है और जो उसकी क्रियाशीलता के संवाहक का काम करता है। मजदूर कुछ अन्य पदार्थों को अपने उद्देश्य के अधीन बनाने के लिए कुछ पदायों के यांत्रिक, भौतिक एवं रासायनिक गुणों का उपयोग करता है। फलों जैसे बीवन-निर्वाह के उन साधनों की पोर प्यान न देने पर, जिनको इकट्ठा करने में मनुष्य खुद अपनी बाहों और टांगों से श्रम के प्राचारों का काम लेता है, हम यह पाते हैं कि मजबूर जिस पहली चीर पर अधिकार करता है, वह मन की विषय-वस्तु नहीं, बल्कि श्रम का पौधार होती है। इस प्रकार प्रकृति उसकी क्रियाशीलता की एक इनिय बन जाती है, जिसे वह अपनी शारीरिक इनियों के साथ जोड़ लेता है और इस तरह, बाइबल के कपन के विपरीत, अपना कद और लम्बा कर लेता है। पृथ्वी से मनुष्य का माविम भण्डार-गृह है, वैसे ही वह उसका प्राविम प्राचार-खाना भी है। मिसाल के लिए, वह उसे फेंकने, पीसने, बवाने और काटने प्रावि के पौवारों के रूप में तरह-तरह के पत्थर देती है। पृथ्वी पर भी श्रम का एक प्रोवार है, लेकिन जब वह इस रूप में खेती में इस्तेमाल की जाती है, तब उसके अलावा अनेक पौर पौधारों की तवा मम के अपेक्षाकृत ऊंचे विकास की पावश्यकता होती है। श्रम का तनिक सा विकास होते ही उसे खास तौर पर तैयार किये गये पौधारों की बरत होने लगती है। चुनाचे, पुरानी से पुरानी गुफाओं में भी हमें पत्थर के प्रोबार और हरियार मिलते हैं। मानव-तिहास के प्राचीनतम काल में खास तौर पर तैयार किये गये पत्थरों, लकड़ी, हड़ियों और घोंषों के साथ- साथ पालतू जानवर भी धम के पोवारों के रूप में मुख्य भूमिका अदा करते हैं। पालतू जानवर दे होते हैं, जो खास तौर पर मन के उद्देश्य को सामने रखकर पाले-पोसे गये हों और जिनमें भन द्वारा परिवर्तन कर दिये गये हों। श्रम के पौतारों को इस्तेमाल करना और बनाना हालांकि . 1 " - "बुद्धि जितनी बलवती, उतनी ही चतुर भी होती है। उसकी चतुराई मुख्यतया वस्तुओं की बिचवाई का काम करने वाले के रूप में प्रकट होती है, जिसके द्वारा वह वस्तुओं की अपनी प्रकृति के अनुसार उनकी एक दूसरे के ऊपर क्रिया और प्रतिक्रिया कराती है और इस प्रकार, प्रक्रिया में बिना कोई प्रत्यक्ष हस्तक्षेप किये, अपने उद्देश्यों को कार्यान्वित कराती है।" (Hegel, “Enzyklopādie, Erster Theil, Die Logik" [हेगेल, 'विश्वकोष , पहला भाग, तर्क-शास्त्र'], Berlin, 1840, पृ० ३५२।) गानिल्ह की रचना ("Théorie de rEcon. Polit.", Paris, 1815) वैसे तो घटिया है, किन्तु उसमें उन्होंने फ़िजिमोक्रेट्स को जवाब देते हुए बहुत सुन्दर ढंग से उन अनेक प्रक्रियाओं की गणना की है, जिनके सम्पन्न हो चुकने के बाद ही सही प्रर्य में खेती शुरू हो सकती है। ताँत ने अपनी रचना "Reflexions surla Formation et la Distribution des Richesses" (१७६६) में प्रारम्भिक सभ्यता के लिए पालतू जानवरों के महत्त्व को बहुत जोरदार ढंग से स्पष्ट किया है।