पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२२७

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२२४ पूंजीवादी उत्पादन . . लेकिन, दूसरी मोर, मूल्य पैरा करने की हर प्रक्रिया में निपुन मन को प्रोसत सामाविक भम में परिणत कर देना-बसे, मिसाल के लिए, एक दिन के निपुण मम को छ: दिन के अनिपुण श्रम में परिणत कर देना-अनिवार्य होता है। इसलिए जब हम यह मानकर चलते है कि पूंजीपति ने जिस मजदूर को नौकर रखा है, उसका मम अनिपुन पासत मम है, तब हम असल में एक अनावश्यक हिसाब से बच जाते हैं और अपने विश्लेषण को सरल बना देते हैं। . कंगालों तथा बेघरबार व्यक्तियों, अपराधियों और वेश्याओं आदि की संख्या के १५,००,००० और मध्य वर्ग के ४६,५०,००० लोगों को घटा दिया जाये, तो उपरोक्त १,१०,००,००० ही बचते हैं। लेकिन मध्य वर्ग में उसने छोटी-छोटी पूंजियों के सूद पर रहने वाले लोगों को, अफसरों, साहित्यिकों, कलाकारों, स्कूल-मास्टरों और इसी तरह के अन्य लोगों को भी शामिल कर लिया है, और इस वर्ग की संख्या बढ़ा देने के लिए उसने इन ४६,५०,००० में कारखानों के अपेक्षाकृत मच्छी मजदूरी पाने वाले मजदूरों को भी गिन लिया है ! Bricklayers (राजगीर) भी इसी मद में पाते हैं। (S. Laing, "National Distress ,etc. [एस० लैंग, 'राष्ट्रीय विपत्ति', पादि], London, 18441) "जनता का अधिकांश उस वर्ग का है, जिसके पास भोजन के बदले में देने के लिए साधारण श्रम के सिवा और कुछ नहीं है।" (James Mill, Colony" [जेम्स मिल, 'उपनिवेश'] शीर्षक लेख, "Encyclopaedia Britannica" ["ब्रिटिश विश्वकोष'] के परिशिष्ट में, १८३१) 1"जहां मूल्य की माप के रूप में श्रम की चर्चा होती है, वहां अनिवार्य रूप से एक विशिष्ट प्रकार के श्रम से मतलब होता है ... श्रम के अन्य प्रकारों का उसके साथ क्या अनुपात है , यह बहुत मासानी से मालूम हो जाता है।" ("Outlines of Political Economy" [ अर्थशास्त्र की रूपरेखा'], London, 1832, पृ० २२ और २३1)