पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२३१

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२२८ पूंजीवादी उत्पादन सप्ताह की पैदावार में जितना मूल्य सुरक्षित रखता है, दो सप्ताह की पैदावार में उसका दुगुना मूल्य सुरक्षित रखता है। जब तक उत्पादन की परिस्थितियां एक सी रहती है, उस बात तक मजदूर नया धम करके जितना अधिक मूल्य जोड़ता है, वह उतना ही अधिक मूल्य स्थानांतरित करके सुरक्षित कर देता है; मेकिन यह वह केवल इसलिये करता है कि उसने नया मूल्म ऐसी परिस्थितियों में जोड़ा है, जिनमें कोई तबदीली नहीं पायी है और जो स्वयं उसके मन से स्वतंत्र हैं। बाहिर है कि एक पर्व में यह कहा जा सकता है कि मजबूर पिस मात्रा में नया मूल्य जोड़ता है, वह सबा उसी के अनुपात में पुराने मूल्य को सुरक्षित रखता है। कपास का मूल्य चाहे एक शिलिंग से बढ़कर दो शिलिंग हो बाये और चाहे घटकर छः पस रह जाये, मजदूर दो घण्टे में जितने मूल्य को सुरक्षित रखता है, यह एक घन्टे में सदा उसका पाषा मूल्य सुरक्षित रखता है। इसी प्रकार ,यदि उसके अपने मन की उत्पादकता में कोई परिवर्तन पाता है औरवह घट-बढ़ जाती है, तो वह उसके घटने पर एक घन्टे में पहले से कम और बढ़ने पर पहले से ज्यादा सूत कातेगा और इसलिये एक. घडे की पैदावार में पहले से कम या ज्यादा कपास के मूल्य को सुरक्षित रखेगा। लेकिन, इसके बावजूद, वह एक घण्टे में जितने मूल्य को सुरक्षित रखता है, वो घन्टे में वह उसके दुगुने मूल्य को ही सुरक्षित रखेगा। मूल्य केवल उपयोगी वस्तुओं में या चीजों में होता है। प्रतीकों द्वारा उसे केवल चिन्ह-म में जिस तरह व्यक्त किया जाता है, हम यहां उसकी पर्चा नहीं करेंगे। (भम शक्ति के मूर्त म में मनुष्य स्वयं एक प्राकृतिक बस्तु या एक बीच होता है, हालांकि यह बीच जीवित पार सवेतन होती है, और मम उसमें विद्यमान इस शक्ति की अभिव्यक्ति होता है।) इसलिये किसी वस्तु की यदि उपयोगिता बाती रहती है, तो उसका मूल्य भी गायब हो जाता है। उत्पादन के साधन अपना उपयोग मूल्य सोने के साथ-साथ अपना मूल्य क्यों नहीं सो बेते, इसका कारण यह है कि वे मन-प्रक्रिया में अपने उपयोग मूल्य का मूल रूप तो तो देते हैं, पर तुरन्त ही पैदावार में एक नये उपयोग मूल्य का रूप धारण कर लेते हैं। मूल्य के लिये यह बात चाहे जितनी महत्वपूर्ण हो कि उसे कोई न कोई ऐसी उपयोगी बस्तु बर मिलनी चाहिये, जिसमें बह साकार हो सके, लेकिन उसके लिये इस बात का कोई महत्व नहीं है कि कौनती बास बस्तु यह काम सम्पन्न कर रही है। यह बात हम मालों के स्पान्तरण पर विचार करते समय देख चुके हैं। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि बम-प्रक्रिया में उत्पादन के साधन केवल उसी हद तक अपना मूल्य पैरावार में स्थानांतरित करते हैं, जिस हब तक कि वे अपने उपयोग मूल्य के साथ- ताब अपना विनिमय-मूल्य भी बोते जाते हैं। वे पैरावार को केवल वही मूल्य सौंपते हैं, मोरे पुर उत्पादन के साधनों केस में खो देते हैं। लेकिन इस मामले में बम-अभिन्या के सब भौतिक उपकरण एक ही तरह का व्यवहार नहीं करते हैं। बोपलर के नीचे बनाया जाने वाला कोयला अपना चिन्ह तक बाकी न छोड़कर एकदम गायब हो जाता है। पहियों की पूरी को चिकना करने के लिये जो परवी इस्तेमाल की जाती है, वह भी इसी तरह एकवन गायब हो जाती है। रंग तथा अन्य सहायक पदार्च भी गायब हो जाते हैं, पर तुरन्त ही पैदावार के तत्वों के म में फिर प्रकट हो जाते हैं। कच्चा माल पैरावार का द्रव्य बन जाता है, लेकिन अपनाप बनने के बाद ही। इसलिये, माल और सहायक पदावों का यह विशिष्ट म जाता रहता है, वो उन्होंने बम-अपिया में प्रवेश करते समय धारण कर रखा था। मन के नीवारों के साथ ऐसा नहीं होता। प्राचार, मनाने, वर्कशाप और बर्तन केवल उसी बात तक मन-प्रक्रिया में काम माते हैं, जिस बात .