पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२६०

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अतिरिक्त मूल्य की दर २५७ . लगे, तब पाप लोग प्राक्सको के उन प्रोफेसर साहब को याद कीजियेगा। और अब, सन्बनो, "हम प्रापसे विदा लेते हैं, और भगवान करे, अब हमारी-पापकी उस प्रषिक सुन्दर दुनिया में, मगर उसके पहले भेट न हो।" सीनियर ने "अन्तिम घण्टे" के अपने युद्ध-घोष का पाविष्कार १८३६ में किया था। for . लगातार अपनी निपुणता और गति का प्रयोग करना पड़ता है, और सो भी कड़े नियन्त्रण और अचूक निगरानी के वातावरण में, और यह सचमुच बड़ी निर्दयता प्रतीत होती है कि मां-बाप अपने उन बच्चों को "मालसी" बतायें, जिनको केवल भोजन का समय छोड़कर पूरे १० घण्टे तक ऐसे वातावरण में, ऐसे पेशे के साथ जकड़ दिया जाता है ... पड़ोस के गांवों में मजदूर जितनी देर काम करते हैं, ये बच्चे उससे ज्यादा देर तक काम करते हैं ... हमें साफ़-साफ़ कहना चाहिये कि “निठल्लेपन और व्यसन" की यह निर्दयतापूर्ण चर्चा विशुद्ध पाखण्ड और अत्यन्त लज्जाहीन बगुलाभगती है ... लगभग १२ वर्ष हुए उच्च अधिकारियों की अनुमति से सार्वजनिक रूप से और अत्यन्त गंभीरतापूर्वक यह घोषणा की गयी थी कि कारखानेदार का सारा असल मुनाफ़ा अन्तिम घण्टे के श्रम से निकलता है और इसलिये यदि काम के दिन में एक घण्टे की कमी की जायेगी, तो उसका असल मुनाफ़ा ख़तम हो जायेगा। जिस आत्मविश्वास के साथ यह घोषणा की गयी थी, उससे जनता के एक भाग को कुछ पाश्चर्य हुमा था। हम कहते हैं कि जनता का वही भाग माज तो अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पायेगा, जब वह यह देखेगा "अन्तिम घण्टे" के गुणों के उस मूल आविष्कार का अब इतना संस्कार हो चुका है कि मुनाफ़े के साथ-साथ उसमें नैतिकता भी शामिल हो गयी है; और चुनांचे प्रब यदि बच्चों के श्रम की अवधि को घटाकर पूरे १० घण्टे की कर दिया जाये, तो बच्चों के मालिकों के असल मुनाफ़े के साथ-साथ बच्चों की नैतिकता भी नष्ट हो जायेगी, क्योंकि मुनाफ़ा और नैतिकता दोनों ही इस अन्तिम , इस निर्णायक घण्टे पर निर्भर करते हैं।" (देखिये “Repts., Insp. of Fact., for sust Oct., 1848 " ["फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८४८'], पृ० १०१।) इसी रिपोर्ट में प्रागे इन शुद्ध-हृदय कारखानेदारों की नैतिकता और पवित्रता के अनेक उदाहरण दिये गये हैं और बताया गया है कि पहले चन्द निस्सहाय मजदूरों से इस तरह की दरखास्तों पर दस्तखत कराने के लिये और फिर इन दरखास्तों को उद्योग की एक पूरी शाखा या पूरी काउंटी की दरखास्त के रूप में संसद के सिर पर थोपने के लिये इन कारखानेदारों ने कैसी-कैसी तरकीबों, चालबाजियों और गीदड़- भबकियों का और कैसी-कसी खुशामद और धोखेधड़ी का प्रयोग किया। तथाकथित मार्थिक विज्ञान की वर्तमान अवस्था पर इस बात से काफ़ी प्रकाश पड़ता है कि न तो खुद सीनियर, जिनको इतना श्रेय तो देना ही पड़ेगा कि बाद को उन्होंने फैक्टरी सम्बंधी कानूनों का जोरदार समर्थन किया था, और न ही उनका पहले से माखिरी तक एक भी विरोधी सीनियर के "मौलिक प्राविष्कार" के गलत परिणामों को स्पष्ट नहीं कर पाया है। ये लोग सब के सब वास्तविक व्यवहार की दुहाई देते हैं, मगर इस वास्तविक व्यवहार के असली कारण और उद्भव- स्रोत रहस्या के प्रावरण में छिपे रहते है। फिर भी यह समझना गलत होगा कि विद्वान प्रोफेसर को अपनी मानचेस्टरस्याना से कोई लाभ नहीं हुमा। "Letters on the Factory Act" ('फैक्टरी-कानून के सम्बंध में कुछ व्रत') में उन्होंने 'मुनाफ़े" और "सूद" और यहां तक कि "something more" ("कुछ मौर") के भी साथ सारे . 17-45