पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२८०

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काम का दिन २७७ . के रूप में, मिट्टी के बर्तन बनाने वाले -स्त्रियां और पुरुष दोनों-शारीरिक दृष्टि से और मैतिक दृष्टि से हास-प्रस्त लोग हैं। ग्राम तौर पर उनका शारीरिक विकास रुक गया है, प्राकृति भोंडी हो गयी है और उनका बल अक्सर बहुत ही कुरूप होता है। लोग बात से पहले बूढ़े हो जाते हैं, और इसमें तो तनिक भी सन्देह नहीं कि उनकी उन्न बहुत छोटी होती है। इन लोगों में कफ की ज्यादती और खून की कमी होती है, और बार-बार होने वाला मंदाग्नि का हमला, जिगर और गुरदे की बीमारियां और गठिया रोग उनके शरीर की दुर्बलता को पूर्णतया स्पष्ट कर देते हैं। लेकिन जितनी बीमारियां हैं, उनमें से सबसे ज्यादा वन-रोगों- निमोनिया, राजयक्ष्मा, श्वासनलीदाह और दमे-के शिकार होते हैं। एक खास बीमारी सिर्फ इन्हीं लोगों में पायी जाती है। वह मिट्टी के बर्तन बनाने वालों का बमा या मिट्टी के बर्तन बनाने वालों की तपेविक कहलाती है। मिट्टी के बर्तन बनाने वालों की दो तिहाई या उससे भी अधिक संख्या में ग्रंथियों, या हड्डियों अथवा शरीर के अन्य भागों की सूजन की बीमारी पायी जाती है... यदि इस रिस्ट्रिक्ट की पाबादी के शारीरिक हास (degenerescence) ने और भी अधिक भयंकर रूप धारण नहीं कर लिया है, तो इसका यह कारण है कि प्रास-पास के इलाकों से नये लोग माते रहते हैं और माह-शादी के जरिये पयावा तन्नुस्त नसलों के लोग उसमें शामिल होते रहते हैं।"1 इसी अस्पताल के भूतपूर्व हाउस-सर्जन मि० चार्ल्स पार्सन्स ने कमिश्नर लोंगे के नाम एक पत्र में अन्य बातों के अलावा यह भी लिखा है कि "मैं मांकड़ों के आधार पर नहीं, बल्कि केवल व्यक्तिगत पर्यवेक्षण के प्राधार पर ही कुछ कह सकता हूं, परन्तु मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि इन गरीब बच्चों को देखकर, जिनके स्वास्थ्य को या तो उनके माता- पिता के पोर या उनके मालिकों के लालच को पूरा करने के लिए बलिदान कर दिया गया है, मुझे बार-बार बहुत गुस्सा पाया है।" मि० पार्सन्स ने मिट्टी के बर्तन बनाने वालों को होने वाली बीमारियों के कारण गिनाये हैं और उनका सार निकालते हुए कहा है कि सब बीमारियों का मूल कारण यह है किइन लोगों को "बहुत ज्यादा देर तक" ("long hours") काम करना पड़ता है। कमीशन की रिपोर्ट में यह विश्वास प्रकट किया गया है कि "एक ऐसे उद्योग के बारे में, जिसने पूरे संसार में इतना प्रमुख स्थान प्राप्त कर लिया है, बहुत दिनों तक यह नहीं कहना पड़ेगा कि उसकी महान सफलता के साथ-साथ उसमें काम करने बाले उन मजदूरों का,.. जिनके श्रम एवं निपुणता के बल पर यह महान सफलता प्राप्त हुई है,.. शारीरिक हास हमा है, उनको बड़े पैमाने पर शारीरिक कष्ट उठाना पड़ा है पौर उनकी मौत जल्दी होने लगी है। और इंगलब के मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारखानों के बारे में जो कुछ कहा गया है, वह स्कोटलंग के कारखानों के बारे में भी सच है।' दियासलाइयों का उद्योग १८३३ से प्रारम्भ हुमा है। खुद दियासलाई में फास्फोरस लगाने की पति के पाविष्कार के बाद उसका भीगणेश हुमा। १८४५ के बाद से इंगलैड . . 1 "Children's Employment Commission. First Report, etc., 1863" ('ate- सेवायोजन प्रायोग की पहली रिपोर्ट, इत्यादि, १८६३'), पृ. २४ । «Children's Employment Commission, 1863" ('ara-garutant aruto १९६३'), पृ. २२ और XI (ग्यारह)। उप. पु., पृ. XLVI (सैतालीस)।