पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२८७

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२८४ पूंजीवादी उत्पादन , अधिक से अधिक लम्बा जींचने और रात को मजदूरों से ज्यादा से ज्यादा काम लेने की परति की नींव पड़ गयी, हालांकि रात के काम की प्रथा ने लन्दन में भी केवल १८२४ के बाद से ही अपने पांव अच्छी तरह जमाये हैं।' अभी-अभी वो कुछ कहा गया है, उससे यह बात भी समझ में मा जानी चाहिये कि जांच- कमीशन की रिपोर्ट ने रोटी बनाने वाले कारीगरों को कम उन तक जिन्दा रहने वाले उन मजदूरों की श्रेणी में क्यों रखा है, बो यदि सौभाग्यवश मजदूर वर्ग के अधिकतर बच्चों की तरह असमय मृत्यु का शिकार नहीं हो पाते, तो ४२ वर्ष की उम्र तक बहुत मुश्किल से पहुंचते हैं। और फिर भी रोटी बनाने के व्यवसाय में काम करने के इच्छुक उम्मीदवारों की सदा भीड़ लगी रहती है। लन्दन में इस व्यवसाय के लिये मजबूर-प्राप्ति के बोत हैं स्कोटलेज, इंगलैब के पश्चिमी क्षेतिहर खिले और जर्मनी। १५५५-६० में पायरलेन के रोटी बनाने वाले कारीगरों ने रात का और रविवार का काम बन्द कराने के लिये अपने बचे से बड़ी-बड़ी सभाएं की। साधारण जनता ने भी- मसलन मई १८६० में बलिन की सभा में-पायरनमवासियों के प्रबल उत्साह के साथ उनका समर्थन किया। इस पान्दोलन के फलस्वरूप वेक्सफ़ोर्ड, किल्केन्नी, पलान्मेल, वाटरको प्रादि स्थानों में केवल बिन में काम कराने का नियम सफलतापूर्वक लागू हो गया। "लिमरिक में, जहां कारीगरों की शिकायतें हद से ज्यादा बढ़ गयी थी, रोटी की दुकानों के मालिकों के विरोष के सामने पान्दोलन पराजित हो गया है। वहां इस मान्दोलन के सबसे बड़े विरोषी वे मालिक थे, जिनके पास पाटे की चक्कियां हैं। लिमरिक की मिसाल का ऐन्निस और टिप्पेरारी पर भी प्रतिगमनात्मक प्रभाव पड़ा। कोर्क में, जहां तीव्रतम बेग से भावनामों का प्रदर्शन हुमा, मालिकों ने कारीगरों को काम से जवाब देने के अपने अधिकार का प्रयोग करके प्रान्दोलन को हरा दिया है। बलिन में रोटी की दुकानों के मालिकों ने प्रान्दोलन का बहुत स्टकर विरोध किया है, और बो कारीगर पान्दोलन में अग्रणी में, उन्हें पवाशक्ति हताश करके वे कारीगरों से उनके विश्वासों के विषय यह बात मनवाने में कामयाब हो गये हैं कि वे इतवार को और रात को काम करना जारी रखेंगे। मायरलेड की अंग्रेवी हकूमत हमेशा बनता पर बमन करने के हषियारों से सजी रहती है और पाम तौर पर यह उनका प्रदर्शन भी करती रहती है। पर उसी सरकार द्वारा नियुक्त. की गयी इस समिति ने बलिन, लिमरिक, कोर्क प्रादि नगरों के रोटी की दुकानों के निर्मम मालिकों को बड़ी नम्रतापूर्वक सममाने गुमाने की कोशिश की और, जैसे वह किसी के अन्तिम संस्कार में भाग ले रही हो, बड़े ही दुःख के अन्दाज में कहा: “समिति को विश्वास है कि श्रम के घण्टे प्रकृति के नियमों से सीमित होते हैं और इन नियमों का उल्लंघन करके कोई भी बम से नहीं बच सकता। यदि रोटी की दुकानों के मालिक अपने कारीगरों को नौकरी से बास्त कर दिये जाने का रविताकर, उन्हें अपने पार्मिक विश्वासों तथा अपनी स्वस्थ भावनामों का हनन करने के लिये और देश के कानूनों को तोड़ने के लिये मजबूर करते हैं (यह सब . . . . 1 uFirst Report, etc." ("पहली रिपोर्ट , इत्यादि')।

  • "Report of Committee on the Baking Trade in Ireland for 1861"

('मायरलैण्ड में रोटी बनाने के व्यवसाय की जांच करने के लिये नियुक्त की गयी कमिटी १८६१')। की रिपोर्ट,