पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३०२

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काम का दिन २६९ अनुभाग ५-काम का सामान्य दिन प्राप्त करने का संघर्ष । -काम के दिन का विस्तार करने के विषय में १४वीं सदी के मध्य से १७वीं सदी के अन्त तक बनाये गये अनिवार्य कानून "काम के दिन का क्या पर्व है? पूंजी उस भम-शक्ति का कितने समय तक उपभोग कर सकती है, जिसका दैनिक मूल्य उसने पुका रखा है? स्वयं मम-शक्ति के पुनरुत्पावन के लिये जितना भम-काल मावश्यक है, काम के दिन को उसके भागे कितना नीचा जा सकता है?" हम यह देख चुके हैं कि इन तमाम सवालों का पूंजी यह बवाब देती है कि काम के दिन में पूरे चौबीस घन्टे होते हैं, जिनमें से पाराम के ये बन्द घन्टे काट लिये जाते हैं, जिनके बिना श्रम-शक्ति पागे काम करने से एकदम इनकार कर देती है। इसलिये यह एक स्वतःस्पष्ट बात है कि मखदूर अपनी जिन्दगी भर भम-शक्ति के सिवा और कुछ नहीं होता और इसलिये उसका वह सारा समय, जिसमें वह काम कर सकता है, प्रकृति और कानून के नियमों के अनुसार पूंजी के पात्म-विस्तार के लिये खर्च होना चाहिये। जो लोग मजदूर को शिक्षा के लिये, बौद्धिक विकास के लिये, सामाजिक कार्यों तथा सामाजिक भावान-प्रदान के लिये, उसकी शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों के स्वच्छंद विकास के लिये या यहां तक कि . - . व्यवस्था के अनुसार काम होता है। "सप्ताह का जो हिस्सा काम में खर्च होता है, उसके दौरान में एक बार में ज्यादा से ज्यादा छः घण्टे लगातार पाराम करने के लिये मिलते है, और घर से कारखाने तक माने जाने में, नहाने-धोने और कपड़े पहनने में तथा भोजन करने में जो समय जाता है, वह भी इन्हीं छः घण्टों में से निकालना पड़ता है। इसलिये, माराम करने के लिये सचमुच बहुत ही कम समय मिलता है, और ताजा हवा में घूमने और खेलने के लिये तो जरा भी समय नहीं मिलता। हां, अगर नींद का समय काटकर घूमा पौर खेला जाये, तो बात दूसरी है। मगर इन छोटे-छोटे लड़कों के लिये, खास तौर पर इतनी ज्यादा गरमी में ऐसा थका देने वाला काम करने के बाद, सोना बहुत जरूरी होता है ... और जो थोड़ी सी नींद ये लोग ले पाते हैं, वह भी अक्सर बीच में ही टूट जाती है। लड़कों को रात को अक्सर बीच में ही नियत समय पर उठने की चिन्ता के कारण जाग जाना पड़ता है, और दिन में वे शोर के कारण अच्छी तरह सो नहीं पाते। मि० व्हाइट ने कुछ ऐसे उदाहरण बताये है, जहां एक लड़के को लगातार ३६ घण्टे तक काम करना पड़ा; १२ वर्ष की उम्र के कुछ और लड़कों ने सुबह के २ बजे तक काम किया, फिर वे कारखाने में ही सो गये और ५ बजे (सिर्फ ३ घण्टे सोने के बाद!) उठकर फिर काम में लग गये। ट्रेमेनहीर और टुफ़नल ने, जिन्होंने कमीशन की सामान्य रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया था, कहा है: “अपनी दिन-पाली या रात-पाली में लड़कों, नौजवानों, लड़कियों और औरतों को जितना काम करना पड़ता है, वह निश्चय ही एक असाधारण चीज है।" (उप० पु०, पृ. XLII (ततालीस) और XLIV (चवालीस)।) उधर शायद काफ़ी रात बीत जाने पर त्यागमूर्ति श्रीमान कांच-पूंजी पोर्ट-शराब से मस्त होकर अपने से घर की पोर रवाना होते है और रास्ते में महमकाना अन्दाज से गुनगुनाते जाते है : “Britons never, never shall be slavesi" ("न होंगे, न होंगे कभी लिटेनवासी गुलाम !") . .. .