पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३०३

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३०० पूंजीवादी उत्पादन , . रविवार को विभाम करने के लिये (ध्यान रहे, यह देशा रविवार को विधान करने वालों का देश है!) समय देने की बात करते हैं, वे खयाली पुलाव पका रहे हैं। लेकिन अनियंत्रित मोम से अंधी होकर अतिरिक्त मम के लिये वृक-मानव की तरह भूती पूंजी काम के दिन की न केवल नैतिक, बल्कि विशुद्ध शारीरिक सीमामों का भी प्रतिक्रमण कर जाती है। पूंजी शरीर की वृद्धि, विकास और भरण-पोषण के लिये प्रावश्यक समय को भी हरूप लेती है। ताबा हवा और सूरज की धूप का सेवन करने के लिये जो समय चाहिये, वह उसे भी चुरा लेती है। वह भोजन के समय को लेकर हुन्वत करती है और वहाँ मुमकिन होता है, इस समय को भी उत्पादन की प्रक्रिया में शामिल कर लेती है, जिससे मजदूर को काम के दौरान में उत्पादन के किसी साबन की तरह ही भोजन दिया जाता है, जैसे वायलर को कोयला और मशीन को पीच और तेल दिया जाता है। अपनी शारीरिक शक्तियों में नयी जान गलने, नया बल भरने और ताजगी लाने के लिये मजदूर को गहरी नींद सोने की बात होती है। मगर पूंची उसे पकन से एकदम पूर होकर केवल चन्द घडे निश्चल पड़े रहने की इजाजत देती है, क्योंकि यदि वह यह भी न करे, तो मजदूर का शरीर काम करने से जवाब दे । काम के दिन की सीमाएं इस बात से नहीं निर्धारित होती कि श्रम-शक्ति को सामान्य अवस्था में रखने के लिये मजदूर को माराम करने के लिये कितना समय देना मावश्यक है। मजदूर के पाराम करने के समय की सीमाएं इस बात से निश्चित होती है कि मजदूर चाहे जितना ही यातनाव कार्य करे और उससे चाहे कैसे ही बबर्दस्ती काम लिया जाये, और उसका काम चाहे जितना तकलीफदेह हो, मम शक्ति का रोजाना अधिक से अधिक व्यय करना मावश्यक . 1इंगलैण्ड में अब भी कभी-कभी यह होता है कि यदि देहाती इलाकों में कोई मजदूर रविवार को अपने झोंपड़े के सामने वाले बगीचे में काम करता हुमा पाया जाता है, तो विश्राम के पवित्र दिन का उल्लंघन करने के अपराध में उसे जेल भेज दिया जाता है। पर यही मजदूर यदि रविवार के दिन धातु, काग्रज या कांच के उस कारखाने में काम करने न जाये, जहां वह नौकर है, तो भले ही वह अपनी धार्मिक भावना के कारण काम पर न गया हो, उसे करार तोड़ने का दोषी ठहराया जाता है और सजा सुना दी जाती है। यदि पूंजी का विस्तार करने की प्रक्रिया के दौरान में विश्राम के पवित्र दिन का उल्लंघन किया जायेगा, तो. धर्म-भीर संसद भी उसके खिलाफ कोई शिकायत न सुनेगी। लन्दन की मछली और मुर्गी- अण्डों की दुकानों में काम करने वाले दिन-मजदूरों ने अगस्त १८६३ में एक मावेदन-पत्न के वारा यह मांग की थी कि उनसे रविवार को काम लेने पर प्रतिबंध लगा दिया जाये। इस पावेदन-पत्र में बताया गया है कि सप्ताह के पहले छः दिन उन्हें पीसतन पन्द्रह घण्टे रोजाना काम करना पड़ता है और रविवार को ८-१० घण्टे। इसी भावेदन-पत्र से यह भी पता चलता है कि एक्सटर हाल के अभिजात-वर्गीय बगला-भगतों में कुछ ऐसे स्वाद-प्रेमी भोजन-भट्ट हैं, जो रविवार के इस काम (this "Sunday labour") को बास बढ़ावा देते हैं। ये “साधु-हृदय' लोग, जो "in cute curanda' (अपने हित-साधन में) इतना उत्साह दिखाते हैं, वे दूसरों के कठिन परिश्रम , दैन्य और भूब को अत्यन्त विनम्रता साप सहन करके ईसाई धर्म के प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन करते हैं। Obseqlum ventris istis perniciosfus. est [उन (मजदूरों) के लिये बवान के चटबारे से प्यार करना बहुत खतरनाक होगा, क्योंकि इससे उनका सत्यानाश हो जायेगा], "