पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३९२ पूंजीवादी उत्पादन . फिर हम सहकारिता के सिद्धान्त को उसके सरलतम रूप में देखते हैं, यानी एक ही चीन करने वाले बहुत से भादमियों से एक साथ काम लिया जाता है। अन्तर केवल यह है कि अब यह सिद्धान्त एक समन्वित सम्बंध की अभिव्यक्ति है। हस्तनिर्माण में जैसा श्रम-विभाजन कार्यान्वित होता है, वह न केवल सामाजिक एवं सामूहिक मजदूर के गुणात्मक दृष्टि से भिन्न भागों को सरल बनाता है और उनकी संख्या को बढ़ा देता है, बल्कि वह एक ऐसा निश्चित गणितीय सम्बंध अथवा अनुपात भी पैदा कर देता है, जो इन भागों की परिमाणात्मक सीमा का नियमन करता है, यानी यह हर तफसीली काम के लिये मजदूरों की तुलनात्मक संख्या, अपवा मजदूरों के बल का तुलनात्मक प्राकार, निश्चित कर देता है। सामाजिक श्रम-क्रिया के गुणात्मक उप-विभाजन के साथ-साथ वह इस क्रिया के लिये एक परिमाणात्मक नियम तथा अनुपातिता का भी विकास कर देता है। जब एक बार प्रयोग के द्वारा यह निश्चित हो जाता है कि किसी खास पैमाने पर उत्पादन करते हुए विभिन्न बलों में तफसीली काम करने वाले मजदूरों की संख्या का क्या सही अनुपात होगा, तब केवल प्रत्येक विशिष्ट बल के किसी गुणज का प्रयोग करके ही इस पैमाने को बढ़ाया जा सकता है। ऊपर से यह बात भी है कि कुछ खास तरह के कामों को वही व्यक्ति जितनी अच्छी तह छोटे पैमाने पर करता है, उतनी ही अच्छी तरह बड़े पैमाने पर कर सकता है। इसकी मिसालें हैं: देख-रेख करने का मम, प्रांशिक पैदावार को एक अवस्था से दूसरी अवस्था तक लाना-ले जाना, इत्यादि। इस प्रकार के कामों को अलग-अलग कर देना और उनको किसी जास मजदूर को सौंप देना उस समय तक लाभवायक सिद्ध नहीं होता, जब तक कि इसके पहले काम में लगे हुए मजदूरों की संख्या में वृद्धि नहीं हो जाती। पर इस वृद्धि का प्रत्येक बल पर सानुपातिक प्रभाव पड़ना चाहिये। मजदूरों का वह बल, जिसे पौरों से अलग करके कोई खास तफसीली काम सौंप दिया गया है, सदृश तत्वों से मिलकर बना होता है, और वह खुद पूरे यंत्र का एक संघटक भाग होता है। किन्तु बहुत सी हस्तनिर्माणशालानों में यह बल स्वयं ही श्रम का एक संगठित निकाय होता है, और पूरा यंत्र ऐसे प्राथमिक संघटनों के बार-बार बोहराये जाने प्रयवा गुणन का फल होता है। मिसाल के लिये कांच की बोतलों के हस्तनिर्माण को लीजिये। उसे तीन बुनियादी तौर पर भिन्न अवस्थामों में बांटा जा सकता है। पहली प्रारम्भिक अवस्था होती है, जिसमें कांच के संघटकों को तैयार किया जाता है,-रेत और चूने भावि को मिलाया जाता है, और उनको गलाकर कांच की एक तरल राशि तैयार की जाती है। इस पहली अवस्था में-और साथ ही . 1 1 . 'जब (प्रत्येक हस्तनिर्माणशाला की पैदावार के विशिष्ट स्वरूप के माधार पर) यह पता लगा लिया जाता है कि उसे कितनी क्रियानों में बांट देना सबसे अधिक लाभदायक होगा, तथा काम पर लगाये जाने वाले व्यक्तियों की संख्या भी मालूम हो जाती है, तब अन्य ऐसी तमाम हस्तनिर्माणशालाएं, जो इस संख्या के किसी प्रत्यक्ष गुणज से काम नहीं लेतीं, ज्यादा लागत लगाकर वही वस्तु तैयार करेंगी... इस तरह हस्तनिर्माणशालामों के माकार को बड़ा TT AT & T UT UT ET BATETI" (C. Babbage, “On the Economy of Machinery” [सी० बबेज, 'मशीनों के अर्थशास्त्र के विषय में'], पहला संस्करण , London, 1832,. अध्याय २१, पृ० १७२-१७३।) इंगलैण्ड में कांच को गलाने की भट्ठी कांच की उस भट्ठी से अलग होती है, जिसमें कांच से बोतलें बनायी जाती हैं। बेल्जियम में वही भट्ठी दोनों काम देती है।