पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४२

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अग्रेजी संस्करण की भूमिका ३९ . प्रार्षिक स्थिति का गहरा अध्ययन एक राष्ट्रीय मावश्यकता के रूप में अनिवार्य हो जायेगा। उत्पादन का और इसलिये मंडियों का भी लगातार पीर तेजी के साथ विस्तार किये बिना इस देश की प्रौद्योगिक व्यवस्था का काम करना असम्भव है, और इसलिये वह व्यवस्था एकदम ठप होती जा रही है। स्वतंत्र व्यापार अपने साधनों को समाप्त कर चुका है। यहां तक कि मानचेस्टर को भी अपने इस भूतपूर्व प्रार्षिक धर्मशास्त्र में सन्देह पैदा हो गया है। अंग्रेजी उत्पादन को हर जगह, न सिर्फ रमित मंडियों में, बल्कि तटस्य मंडियों में भी, और यहां तक कि इंगलिश चैनेल के इस तरफ़ भी, तेजी से विकसित होते हुए विदेशी उद्योगों का सामना करना पड़ रहा है। उत्पादक शक्ति की जहां गुणोत्तर अनुपात में वृद्धि होती है, वहां मणियों का विस्तार अधिक से अधिक समानान्तर अनुपात में होता है। व्हराव, समृद्धि, पति-उत्पादन और संकट का बसवर्षीय बक, जो १०२५ से १८६७ तक बारम्बार प्राता रहा, वह तो अब सचमुच समाप्त हो गया मालूम होता है। लेकिन वह हमें महज एक स्थायी पौर चिरकालिक मन्त्री की निराशा के बलबल में धकेल गया है। समृद्धि के जिस काल की माहें भर-भर कर याद की जा रही है, वह अब नहीं पायेगा। हम जितनी बार उसकी सूचना देने वाले चिन्हों की अनुभूति सी करते हैं, उतनी ही बार वे चिन्ह फिर शून्य में विलीन हो जाते हैं। इस बीच हर बार, जब जाड़े का मौसम पाता है, तो यह गम्भीर सवाल नये सिरे से उठ खड़ा होता है कि "बेकारों का क्या किया जाये? "बेकारों की संख्या तो हर वर्ष बढ़ती जाती है, पर इस सवाल का जवाब देने वाला कोई नहीं मिलता, और अब हम उस क्षण का लगभग सही अनुमान लगा सकते हैं, जब बेकारों का पर्व समाप्त हो जायेगा और वे अपने भाग्य का जब निर्णय करने के लिए उठ खड़े होंगे। ऐसे क्षण में उस भावमी की आवाज निश्चय ही सुनी जानी चाहिए, जिसका पूरा सिद्धान्त इंगलैड के पार्षिक इतिहास तथा बशा आजीवन अध्ययन का परिणाम है और जो इस अध्ययन के प्राधार पर इस नतीजे पर पहुंचा था कि कम से कम योरप में इंगलैण ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां वह सामाजिक क्रान्ति, जिसका होना अनिवार्य है, सर्वथा शान्तिपूर्ण और कानूनी उपायों के द्वारा हो सकती है। इसके साथ-साथ वह भावमी निश्चय ही यह जोड़ना कभी नहीं भूला था कि शायद ही यह माता की जा सकती है कि अंग्रेज शासक वर्ग बिना एक "बासता-समर्थन विद्रोह " का संगठन किये इस शान्तिपूर्ण एवं कानूनी क्रान्ति के सामने प्रात्म-समर्पण कर बेंगे। फेडरिक एंगेल्स . ५ नवम्बर १८८६। माज तीसरे पहर मानचेस्टर के चेम्बर आफ कामर्स की वैमासिक बैठक हुई। उसमें स्वतंत्र व्यापार के प्रश्न पर गरम बहस हुई। एक प्रस्ताव पेश किया गया, जिसमें कहा गया था कि “४० वर्ष तक इस बात की वृथा प्रतीक्षा कर चुकने के बाद कि दूसरे राष्ट्र भी स्वतंत्र व्यापार के मामले में इंगलैण्ड का अनुकरण करेंगे, चेम्बर समझता है कि अब इस मत पर पुनःविचार करने का समय मा गया है"। प्रस्ताव ठुकरा दिया गया, पर केवल एक मत के प्राधिक्य से : उसके पक्ष में २१ और विपक्ष में २२ मत पड़े। “Evening Standard", १ नवम्बर १८८६॥