पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४४४

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ४४१ यदि बस्तकारियों प्रथवा हस्तनिर्माणों द्वारा तैयार किये गये मालों के नामों का पोर उसी प्रकार के मशीनों द्वारा तैयार किये गये मालों के नामों का विश्लेषण और मुकाबला किया जाये, तो पाम तौर पर यह पता चलेगा कि मशीनों की पैदावार में मम के प्राचारों द्वारा स्थानांतरित मूल्य सापेक्ष दृष्टि से तो बढ़ जाता है, पर निरपेक्ष दृष्टि से कम हो जाता है। दूसरे शब्दों में, उसकी निरपेक्ष मात्रा तो घट जाती है, मगर पैदावार के कुल मूल्य की तुलना में, उदाहरण के लिये, एक पौड सूत के कुल मूल्य की तुलना में,- उसकी मात्रा बढ़ जाती है।' . 1 'जब मशीनें उन घोड़ों तथा अन्य पशुओं को अनावश्यक बना देती हैं, जिनको पदार्य का रूप बदल देने वाली मशीनों के रूप में नहीं, बल्कि केवल चालक शक्तियों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, तब मूल्य का वह हिस्सा, जो मशीनों द्वारा जोड़ा गया है, सापेक्ष तथा निरपेक्ष दोनों दृष्टियों से कम हो जाता है। यहां पर चलते-चलते यह भी बता दिया जाये कि देकार्ते ने मान मशीनों के रूप में पशुओं की परिभाषा करते समय हस्तनिर्माण के काल के दृष्टिकोण से काम लिया था, जब कि मध्य युग की दृष्टि में पशु मनुष्य के सहायक थे, जैसा कि वे फ़ोन हेलेर को उनकी पुस्तक "Restauration der Staatsoissenschaften" में प्रतीत हुए थे। देकार्ते की रचना “Discours de la Methode" से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि बेकन की भांति उन्होंने भी यह अनुमान कर लिया था कि चिन्तन की बदली हुई पद्धतियों के फलस्वरूप उत्पादन के रूप में परिवर्तन हो जायेगा और मनुष्य प्रकृति को व्यावहारिक ढंग से अपने प्राधीन बना लेगा। उस पुस्तक में देकार्ते ने लिखा है : “Il est possible de parvenir a des connaissances fort utiles à la vie, et qu'au lieu de cette philosophie spécula- tive qu'on enseigne dans les écoles, on en peut trouver une pratique, par laquelle, connaissant la force et les actions du feu, de l'eau, de l'air, des astres, et de tous les autres corps qui nous environnent, aussi distinctement que nous connaissons les divers métiers de nos artisans, nous les pourrions employer en même façon à tous les usages auxquels ils sont propres, et ainsi nous rendre comme maîtres et possesseurs de la nature" "T TE contri- buer au perfectionnement de la vie humaine." ["ऐसा ज्ञान प्राप्त करना भी (उन विधियों द्वारा, जिनका उन्होंने दर्शन में समावेश किया) सम्भव है, जो जीवन के लिये अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा, और तब स्कूलों में पाजकल जो काल्पनिक दर्शन पढ़ाया जाता है, उसके स्थान पर एक व्यावहारिक दर्शन पढ़ाया जायेगा, जिसके द्वारा प्राग, पानी, हवा और नक्षत्रों की तथा हमारे इर्द-गिर्द और जितनी वस्तुएं हैं, उन सब की शक्ति एवं कार्य का उतना ही अच्छा ज्ञान प्राप्त करके, जितना अच्छा ज्ञान हमें अपने दस्तकारों की विभिन्न दस्तकारियों का प्राप्त है, हम उनका उसी तरह उन तमाम कामों में उपयोग कर सकेंगे, जिनके लिये वे उपयुक्त है, और इस प्रकार हम प्रकृति के स्वामी और मालिक बन जायेंगे और इस तरह "मानव-जीवन का अधिक से अधिक विकास करने में योग देंगे।"] सर डडली नर्थ की रचना "Discourses upon Trade' ('व्यापार के सम्बंध में कुछ प्रवचन') (१६६१) में कहा गया है कि देकार्ते की पद्धति ने पर्यशास्त्र को सोने , व्यापार प्रादि के विषय में पुरानी कपोल-कल्पित कयामों और अंधविश्वासों से भरे विचारों से मुक्त करना प्रारम्भ कर दिया था। लेकिन मोटे तौर पर देखा जाये, तो शुरू के दिनों के अंग्रेज अर्थशास्त्रियों