पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४६२

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ४५६ है, बल्कि उसे प्राप्त करने में जो सर्चा लगता था, वह कम हो जाता है। यह सच है कि काम के दिन को लम्बा करने पर हर बार कमोबेश यह बात होती है, मगर जिस विशेष परिस्थिति पर हम विचार कर रहे हैं, उसमें अधिक उल्लेखनीय परिवर्तन होता है, क्योंकि यहां पर पूंजी का वह भाग अपेक्षाकृत अधिक होता है, जो श्रम के प्राचारों में बदल दिया गया है। पटरियों की व्यवस्था का विकास पूंजी के एक लगातार बढ़ते हुए भाग को एक ऐसे रूप में स्थिर कर देता है, जिसमें एक ओर तो उसका मूल्य लगातार खुद अपना विस्तार कर सकता है और, दूसरी मोर, जिसमें वह जीवित श्रम के साथ सम्पर्क सोते ही अपने उपयोग-मूल्य तथा विनिमय-मूल्य बोनों को खो देता है। मि० ऐशवर्ष नामक एक बड़े कपड़ा-मिल-मालिक ने प्रोफेसर नस्साऊ ग्बलयू० सीनियर से कहा था: “जब कोई मजदूर फावड़ा उगकर रख देता है, तो उस काल के लिये वह प्रठारह पेन्स की पूंजी को व्यर्थ बना देता है। पर जब हमारा कोई पादमी मिल छोड़कर चला जाता है, तो वह उस पूंजी को व्यर्ष बना देता है, जिसमें १ लाल पौण की लागत लगी है।" खरा कल्पना तो कीजिये ! १,००,००० पौण की पूंजी को एक क्षण के लिये भी "व्यर्ष" बना दिया गया, तो कितना भारी नुकसान होगा! सचमुच, यह तो भयानक बात है कि हमारा कोई भी भावमी कभी फैक्टरी छोड़कर जाये। जैसा कि सीनियर ने ऐशवर्ष की यह सील सुनने के बाद साफ़-साफ़ कहा था, मशीनों का बढ़ता हुमा उपयोग यह "वांछनीय" बना देता है कि काम के दिन को अधिकाधिक लम्बा किया जाये।' मशीनें सापेन अतिरिक्त मूल्य पैदा करती हैं न केवल इस तरह कि वे श्रम-शक्ति के मूल्य को प्रत्यन रूप से कम कर देती हैं और उसके पुनरुत्पादन में भाग लेने वाले मालों को सस्ता , 11 34 अतिरिक्त खर्चा किये बिना ही कच्चे माल की अतिरिक्त मात्राओं का उपयोग करना सम्भव हो।' (R. Torrens, "On Wages and Combination" [मार० टोरेन्स , 'मजदूरी और संघों के विषय में'], London, 1834, पृ. ६४।) 'इस परिस्थिति का यहां केवल पूर्णता की दृष्टि से जिक्र कर दिया गया है, क्योंकि जब तक में तीसरी पुस्तक पर नहीं पहुंचता, तब तक मैं मुनाफ़े की दर पर -अर्थात् पेशगी लगायी गयी कुल पूंजी के साथ अतिरिक्त मूल्य के अनुपात पर-विचार नहीं करूंगा। • Senoir, "Letters on the Factory Act" (सीनियर, 'फैक्टरी-कानून के सम्बंध में कुछ खत'), London, 1837, पृ० १३, १४ । 'चल पूंजी के साथ अचल पूंजी का अनुपात बहुत ऊंचा होने के कारण... काम के लम्बे घण्टे वांछनीय हो जाते हैं।" मशीनों प्रादि का उपयोग बढ़ जाने पर "लम्बे घण्टों तक काम कराने की प्रेरणा अधिक बलवती हो जायेगी, क्योंकि यही एक ऐसा तरीका है, जिससे प्रचल पूंजी के एक बड़े भाग को लाभदायक बनाया जा सकता है।" (उप० पु०, पृ० ११-१३।) "किसी भी मिल के कुछ खर्चे ऐसे होते हैं जो, चाहे मिल पूरे समय काम करे या चाहे कम समय तक चले, एक से रहते हैं, जैसे , मिसाल के लिये, लगान, टैक्स और कर, माग का बीमा , अनेक स्थायी कर्मचारियों का वेतन, मशीनों का ह्रास और कारखाने के ऐसे अन्य खर्चे, जिनका मुनाफ़ों के साथ अनुपात उत्पादन के घटने के साथ-साथ बढ़ता जाता है।" ("Rep. of Insp. of Fact. for 31st. Oct., 1862 ['फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८६२'], पृ. १९) . . - -