पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४६६

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ४६३ - उसके एक स्वाभाविक परिणाम के रूप में श्रम की तेजी और तीवता भी बढ़ती जाती है। चुनांचे इंगलैण में पापी सदी के दौरान काम के दिन की लम्बाई बढ़ने के साथ-साप फैक्टरी- मजदूरों के श्रम की तीव्रता भी बढ़ती गयी है। फिर भी पाठक यह बात बहुत मासानी से समझ सकेंगे कि जहां कहीं भम व्हर-ठहरकर नहीं किया जाता, बल्कि एक अपरिवर्तनीय एकरूपता के साप रोज बोहराया जाता है, वहां अनिवार्य रूप से एक बिंदु ऐसा पायेगा, जब काम के दिन को और लम्बा करना तथा श्रम को और तीव्र बनाना, ये बोनों चीजें एक दूसरे का इस तरह अपवर्जन कर देंगी कि काम के दिन को लम्बा करना केवल उसी हालत में सम्भव होगा, जब भम की तीव्रता कुछ कम कर दी जायेगी, और श्रम की तीव्रता को बढ़ाना केवल उसी हालत में सम्भव होगा, जब काम का दिन कुछ छोटा कर दिया जायेगा। जब मजदूर-वर्ग के धीरे-धीरे बढ़ते हुए विद्रोह ने संसद को श्रम के घण्टों को अनिवार्य रूप से छोटा कर देने के लिये मजबूर कर दिया और जब संसद ने जो सचमुच फैक्टरियां कहला सकती थी, उनमें काम का एक सामान्य दिन लागू कर दिया, यानी जब काम के दिन को लम्बा करके अतिरिक्त मूल्य के उत्पादन को बढ़ाना एक बार हमेशा के लिये रोक दिया गया, तो बस उसी क्षण से पूंजी अपनी पूरी ताकत के साथ मशीनों में जल्दी-जल्दी और सुधार करके सापेक्ष अतिरिक्त मूल्य के उत्पादन में जुट गयी। इसके साथ-साथ सापेक्ष अतिरिक्त मूल्य के स्वरूप में भी एक परिवर्तन हो गया। मोटे तौर पर, सापेक्ष अतिरिक्त मूल्य पैदा करने का तरीका यह है कि मजदूर की उत्पादक शक्ति बढ़ा दी जाये, ताकि वह एक निश्चित समय में पहले जितना ही श्रम वर्ष करके पहले से अधिक पैदावार तैयार कर दिया करे। श्रम-काल अब भी कुल पैदावार में वही मूल्य स्थानांतरित करता है, जो वह पहले करता था, परन्तु विनिमय-मूल्य की यह अपरिवर्तित मात्रा प्रब पहले से अधिक उपयोग-मूल्यों पर फैल जाती है। इसलिये हर अकेले माल का मूल्य पहले से गिर जाता है। किन्तु जब श्रम के घरों को अनिवार्य रूप से कम कर दिया जाता है, तब स्थिति इससे भिन्न होती है। उससे उत्पादक शक्ति के विकास के लिये और उत्पादन के साधनों में मितव्ययिता बरतने के लिये जो जबर्दस्त बढ़ावा मिलता है, उससे मजदूर के लिये यह जरूरी हो जाता है कि वह एक निश्चित समय में पहले से अधिक श्रम करे, उससे श्रम-शक्ति का तनाव बढ़ जाता है और काम के दिन के छिा पहले से अधिक भर दिये जाते हैं, -या यूं कहिये कि भम का इस हद तक संघनन कर दिया जाता है, जो केवल छोटे दिन में ही सम्भव है। इसके बाद से यदि एक निश्चित अवधि में पहले से अधिक मात्रा में श्रम का संघनन हो जाता है, तो उसे वही समझा जाता है, जो वह सचमुच होता है, यानी उसे अधिक मात्रा का मम ही समझा जाता है। मन के विस्तार की-अर्थात् उसकी प्रषि की-एक माप तो पहले ही पी, अब उसके अलावा भम की तीव्रता को या उसके संघनन अथवा धनता को भी मापा जाने लगता है। बस घन्टे के काम के दिन के पहले से अधिक सघन घन्टे में बारह घन्टे के काम i जाहिर है कि अलग-अलग उद्योगों में श्रम की तीव्रता में सदा अन्तर होता है। लेकिन, जैसा कि ऐडम स्मिथ ने सिद्ध करके दिखाया है, इस तरह के अन्तर कुछ हद तक हर प्रकार के श्रम की कुछ विशिष्ट, किन्तु गौण परिस्थितियों के कारण दूर हो जाते हैं। लेकिन इस सूरत में मूल्य की माप के रूप में श्रम-काल पर केवल उसी हद तक कुछ प्रभाव पड़ता है, जिस हद तक कि श्रम की अवधि और उसकी तीव्रता की मात्रा श्रम की उसी एक मात्रा की दो परस्पर विरोधी एवं परस्पर अपवर्षी अभिव्यंजनाएं होती हैं।