पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५४५

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५४२ पूंजीवादी उत्पादन नष्ट हो गया है, जिसके सहारे मौसमी काम सचमुच बड़ा हुआ था कि बब पहले से बड़े मकान बनने लगते हैं, नयी मशीनें लगायी जाती है, काम में लगे हुए मजदूरों की संस्था में वृद्धि होती है। और जब इन सब बातों के परिणामस्वरूप पोक व्यापार करने को प्रणाली में तबीलियां हो जाती है, तो बाकी तमाम तथाकषित अवेय कठिनाइयां भी गायब हो जाती हैं। लेकिन, इन तमाम बातों के बावजूद, पूंजी ऐसी तीलियों को कभी दिल से स्वीकार नहीं करती, पौर यह बात खुब उसके प्रतिनिधि भी बारबार तसलीम कर चुके हैं। पूंजी तमी इन्हें स्वीकारती है, गव संसब मम के घण्टों का अनिवार्य रूप से नियमन करने के लिये कोई सामान्य कानून बना देती है और पूंनी पर उस कानून का दबाव पड़ता है।' . अनुभाग 8-फ़ैक्टरी-कानून । - उनकी सफ़ाई और शिक्षा से सम्बंध रखने वाली धाराएं। - इंगलैण्ड में उनका सामान्य प्रसार . उत्पादन की प्रक्रिया के स्वयंस्फूर्त ढंग से विकसित रूप के विक्ड समाज की पहली सचेतन एवं विधिवत प्रतिक्रिया फैक्टरी-कानूनों के रूप में सामने पाती है। जैसा कि हम देख चुके हैं, फ्रेक्टरीकानून सूत, स्वचालित यंत्र और बिजली से काम करने वाली तार-व्यवस्था के समान 1 "Ch. Empl. Comm. V Rep." ('बाल-सेवायोजन भायोग की ५ वीं रिपोर्ट'), पृ० १७१, अंक ३४॥ 'निर्यात का काम करने वाली बैडफ़ोर्ड की कुछ कम्पनियों की गवाही इस प्रकार है : “इन परिस्थितियों में यह बात साफ़ है कि काम पूरा करने के लिये किसी भी लड़के से सुबह ८ बजे से शाम के ७ या ७.३० बजे से ज्यादा देर तक काम कराने की कोई जरूरत नहीं है। यह केवल अतिरिक्त मजदूरों को नौकर रखने और अतिरिक्त पूंजी लगाने का सवाल है। यदि कुछ मालिक इतने लालची न हों, तो लड़कों को इतनी देर तक काम न करना पड़े। एक अतिरिक्त मशीन पर केवल १६ या १८ पौण्ड खर्च होते हैं। मजदूरों से आजकल जो मोवरटाइम काम कराया जाता है, उसका अधिकांश उपकरणों की कमी और स्थान के प्रभाव का परिणाम होता है।" ('बाल-सेवायोजन पायोग की ५ वीं रिपोर्ट', पृ० १७१, अंक ३५,३६, ३८।) उप० पु.। लन्दन का एक कारखानेदार है, जो यह समझता है कि श्रम के घण्टों का अनिवार्य नियमन कारखानेदारों से मजदूरों की रक्षा और खुद कारखानेदारों की थोक व्यापारियों से रक्षा के लिये जरूरी है। उसने कहा है : "हमारे व्यवसाय में जो दबाव दिखाई दे रहा है, वह उन व्यापारियों का पैदा किया हुआ है, जो, मिसाल के लिये, अपना सामान पालदार जहाज से भेजना चाहते हैं, ताकि वह एक खास मौसम में अपने निर्दिष्ट स्थान पर पहुंच जाये और साथ ही पालदार जहाज और भाप से चलने वाले जहाज के किराये में जो अन्तर होता है, वह भी उनकी जेब में पहुंच जाये; या जो अपने प्रतिद्वन्द्रियों से पहले विदेशी मण्डी में पहुंच जाने के उद्देश्य से भाप के दो जहाजों में से जो पहले रवाना होने वाला होता है, उसको चुन लेते हैं।" 'एक कारखानेदार के शब्दों में,"इस चीज़ से इस कीमत पर बचा जा सकता है कि संसद के बनाये हुए किसी सामान्य कानून के दबाव के फलस्वरूप कारखाने का विस्तार करना जरूरी हो जाये।" (उप० पु०, पृ. x [दस], अंक ३८) 8 .