पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६०३

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६०० पूंजीवादी उत्पादन माल के रूप में मन्दी में बिकने के वास्ते मम के लिये यह हर हालत में सबरी है कि बिकने के पहले उसका सचमुच मस्तित्व हो। परन्तु यदि मजबूर खुद श्रम को एक स्वतंत्र वस्तुगत अस्तित्व दे सकता, तो बह बम न बेचकर माल बेचता।। इन प्रसंगतियों के अलावा, यदि बीवित मम के साथ मुद्रा का-अर्वात् भौतिक रूप प्राप्त मम का- प्रत्यक्ष विनिमय किया जायेगा, तो वह या तो मूल्य के नियम को नष्ट कर देगा, जिसका पूंजीवादी उत्पादन के प्राचार पर स्वतंत्र विकास प्रारम्भ ही होता है, और या वह स्वयं पूंजीवावी उत्पादन को खतम कर देगा, जो कि प्रत्यक्ष रूस में मजदूरी लेकर किये जाने वाले भम पर टिका हुमा है। मिसाल के लिये, मान लीजिये कि १२ घन्टे का काम का दिन ६ शिलिंग के मुद्रा मूल्य में निहित हुमा है। अब या तो सम-मूल्यों का विनिमय होता है, और उस रक्षा में मजदूर को १२ घण्टे के भम के एवज में शिलिंग मिल जाते हैं। इस स्थिति में उसके मम का बाम उसकी पैदावार के नाम के बराबर होगा। और इस सूरत में वह अपने श्रम के परीवार के वास्ते परा भी अतिरिक्त मूल्य नहीं पैदा कर पायेगा और ६ शिलिंग की बह रकम पूंची में पान्तरित नहीं होगी। यानी पूंजीवादी उत्पादन का प्राधार ही पायब हो जायेगा। परन्तु मजदूर तो इसी आधार पर अपना मन बेचता है, और इसी प्रापार पर उसका श्रम मखदूरी का मन है। और या उसे १२ घन्टे के भम के एवज में ६ शिलिंग से कम, अर्थात् १२ घण्टे के मम से कम मिलता है। यानी बारह घण्टे के भन का १० घन्टे के मन के साथ, ६ घन्टे के मम के साथ या उससे भी कम श्रम के साथ विनिमय किया जाता है। असमान मात्राओं का यह समानीकरण केवल मूल्य के निर्धारण का ही अन्त नहीं कर देता। ऐसी प्रात्मविनाशी प्रसंगति का तो किसी नियम केस में प्रतिपादन या स्थापना भी नहीं की जा सकती।' यह कहने से कोई लाम न होगा कि अधिक श्रम का कम श्रम के साथ इसलिये विनिमय होता है कि दोनों के रूप में अन्तर है और उनमें से एक मूर्त रूप प्राप्त और दूसरा बीवन्त बम है।' 1"यदि पाप श्रम को माल मानते हैं, तो उसमें माल की तरह यह बात नहीं होती कि विनिमय करने के पहले उसको पैदा करना जरूरी हो और फिर उसे मण्डी में लाया जाये , जहां उसका अन्य मालों के साथ, उस समय वे माल जिस-जिस मात्रा में मण्डी में मौजूद हों, उसके अनुपात में उसका विनिमय किया जाये। श्रम तो उसी क्षण पैदा होता है, जिस क्षण वह मण्डी में लाया जाता है; नहीं, बल्कि श्रम को तो पैदा करने के पहले ही मण्डी में ले पाते हैं।" ("Observations on Certain Verbal Disputes, etc.” ('93 man farqet qe टिप्पणियां, मादि'], पृ०७५,७६१) 'श्रम को एक प्रकार का माल और श्रम की उपज पूंजी को एक अन्य प्रकार का माल मानते हुए यदि इन दोनों मालों के मूल्यों का श्रम की समान मात्रामों के द्वारा नियमन होता हो, तो श्रम की एक निश्चित मात्रा का... पूंजी की उस मात्रा के साथ विनिमय होगा, जिसके उत्पादन में भी श्रम की यही माना लगी है। जो श्रम पहले हो चुका है.., उसका समान मात्रा के वर्तमान श्रम से विनिमय होगा। लेकिन अन्य मालों के सम्बंध में श्रम का मूल्य...श्रम की समान मात्रामों के द्वारा निर्धारित नहीं होता।" (६० पी० वेकफील्ड, ऐडम स्मिथ के Wealth of Nations' [' राष्ट्रों का धन'] के अपने संस्करण में , बण १, London, 1836, पृ० २३१, नोट।) 8“Il a fallu convenir que toutes les fois qu'il échangerait du travail fait contre du travail à faire, le dernier (le capitaliste) aurait une valeur supérieure