पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६३२

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मजदूरी के राष्ट्रगत भेद ६२९ इसलिये इस प्रोसत तीवता से कम तीव्रता का भम साधारण स्तर का भम नहीं गिना जाता है। किसी भी खास देश में केवल अम-काल की अवधि के द्वारा श्रम के मापे जाने पर महल उसी बात कुछ असर पड़ता है, जब श्रम की तीव्रता राष्ट्रीय मौसत से अधिक हो जाती है। संसार- व्यापी मन्दी में, जिसके अलग-अलग देश अभिन्न अंग हैं, ऐसा नहीं होता। श्रम की पोसत तीवता हर देश में अलग-अलग होती है,-कहीं ज्यादा, तो कहीं कम। इन राष्ट्रीय प्रौलतों की एक भेणी ती बन जाती है, जिसकी मापने की इकाई सार्वत्रिक श्रम की प्रोसत इकाई होती है। इसलिये, कम तीव्रता के राष्ट्रीय श्रम, की तुलना में अधिक तीव्रता का राष्ट्रीय श्रम उतने ही समय में प्रषिक मूल्य पैदा कर देता है, जो अपने को प्रषिक मुद्रा में अभिव्यक्त परन्तु अब मूल्य का नियम अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र पर लागू होता है, तब उसमें यह परिवर्तन और अधिक हो जाता है, क्योंकि दुनिया की मग्गी में अधिक उत्पादक राष्ट्रीय मम साथ ही, उस वक्त तक अधिक तीव्रता का मम माना जाता है, जब तक कि अधिक उत्पादक राष्ट्र प्रतियोगिता के कारण अपने मालों का दाम घटाकर उनके मूल्य के स्तर पर ले पाने के लिये विवश नहीं हो जाता। किसी देश में पूंजीवादी उत्पावन का जितना विकास हो चुका होता है, वहां बम की राष्ट्रीय तीव्रता और उत्पादकता उसी अनुपात में अन्तरराष्ट्रीय स्तर के अपर उठ जाती है। सब अलग-अलग देशों में एक ही समय में एक ही किस्म के मालों की अलग-अलग मात्राएं तैयार होती हैं, तो उनका अन्तरराष्ट्रीय मूल्य असमान होता है, जो अलग-अलग दामों में, अर्थात् अन्तरराष्ट्रीय मूल्यों के अनुरूप मुद्रा की भिन्न-भिन्न कमों में, व्यक्त होता है। इसलिये जिस राष्ट्र में उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली अधिक विकसित होती है, उसमें कम विकसित पूंजीवादी प्रणाली बाले राष्ट्र की तुलना में मुद्रा का सापेक्ष मूल्य कम होगा। प्रतः इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि नाम-मात्र की मजदूरी-पानी मुद्रा के रूम में भम-शक्ति का सम-मूल्य-पहली प्रकार के राष्ट्र में दूसरी प्रकार के राष्ट्र की तुलना में अधिक ऊंची होगी। पर इससे यह कदापि सिड नहीं होता कि वास्तविक मजदूरी पर -अर्थात् मखदूर को मिलने वाले जीवन-निर्वाह के साधनों पर-भी यह बात लागू होती है। लेकिन अलग-अलग देशों में मुद्रा के मूल्य में इस प्रकार का नो तुलनात्मक अन्तर पापा जाता है, उससे अलग भी अक्सर यह देखने में माता है कि पहली प्रकार के राष्ट्र में दूसरी प्रकार के राष्ट्र की अपेक्षा दैनिक या साप्ताहिक मजदूरी अधिक ऊंची होती है, जब कि भमका सापेक दाम, अर्थात् अतिरिक्त मूल्य और पैदावार के मूल्य दोनों की तुलना में मम का नाम, पहला प्रकार के राष्ट्र की अपेक्षा दूसरी प्रकार के राष्ट्र में अधिक ऊंचा होता है।' हम अन्यत्र यह पता लगायेंगे कि उत्पादकता से सम्बंध रखने वाली किन बातों से उद्योग की अलग-अलग शाबानों के लिये इस नियम में कुछ परिवर्तन हो जाता है। 'जेम्स ऐण्डर्सन ने ऐडम स्मिथ मत का खण्डन करते हुए कहा है : “इसी प्रकार यह बात भी उल्लेखनीय है कि हालांकि गरीब देशों में, जहां धरती की उपज और गल्ला प्राम तौर पर सस्ते होते है, श्रम के दिखावटी दाम प्रायः नीचे होते हैं, फिर भी वे अन्य देशों की प्रपेक्षा अधिकांशतया असल में ऊंचे होते है। कारण कि श्रम का वास्तविक दाम वह मजदूरी नहीं होती, जो मजदूर को रोजाना दी जाती है, हालांकि दिखावटी दाम वही होती है। श्रम -