पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६६१

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६५८ पूंजीवादी उत्पादन . अतिरिक्त मूल्य बर्ष कर गलता है, दूसरे में वह उसके केवल एक भाग को सर्च करके और बाकी को मुद्रा में बबलकर अपने पूंजीवादी गुणों का परिचय देता है। अतिरिक्त मूल्य उसकी सम्पत्ति होता है, उसपर कभी किसी और का अधिकार नहीं रहा है। यदि वह उसे उत्पादन में लगा देता है, तो जब वह पहले दिन मण्डी में पाया था, तब उसने जिस तरह अपने कोष में से धन निकालकर सर्च किया था, उसी तरह वह मान भी उसे अपने कोष में से निकालकर खर्च करता है। इस बात से बरा भी फर्क नहीं पड़ता कि वर्तमान उदाहरण में यह कोष उसके मजदूर के प्रवेतन भम से प्राप्त हुमा है। यदि 'क' नामक मजदूर द्वारा उत्पादित अतिरिक्त मूल्य से 'ब' नामक मजदूर को नौकर रखा जाता है, तो पहली बात तो यह है कि इस प्रतिरिक्त मूल्य को तैयार करने के कारण ऐसा नहीं हुमा है कि 'क' को उसके माल का उचित दाम न मिला हो या उसमें एक पाई की भी कटौती की गयी हो, और दूसरी बात यह है कि इस सौदे से 'ब' का तनिक भी सम्बंध नहीं है। वो कुछ मांगता है और जिसे मांगने का उसे अधिकार है, वह यही है कि पूंजीपति उसको उसकी मम-शक्ति का मूल्य प्रवा करे। "बोनों पक्षों को लाभ होता है मजदूर को इस तरह कि किसी भी तरह का मम करने के पहले ही" (कहना यों चाहियेउसके अपने श्रम से कोई फल निकलने के पहले ही)" उसे अपने मम का फल पेशगी मिल जाता है" (यों कहियेः उसे दूसरों के प्रवेतन श्रम का फल मिल जाता है), "पौर मालिक (la maitre) को इसलिये कि यह मखदूर जो श्रम करता है, उसका मूल्य उसकी मजबूरी से अधिक होता है" (यों कहना चाहिये अपनी मजबूरी के मूल्य से अधिक मूल्य का उत्पादन करता है) (Sisiondi, उप. पु०, पृ० १३५)। यह सच है कि जब हम पूंजीवादी उत्पादन पर उसके नवीकरण के निरन्तर प्रवाह की दृष्टि से विचार करते हैं और जब हम एक अलग पूंजीपति तथा एक अलग मजबूर के बजाय एक दूसरे के मुकाबले में बड़े हुए पूरे पूंजीपति-वर्ग और पूरे मजदूर-वर्ग पर विचार करते हैं, तब मामले का एक बिल्कुल दूसरा पहलू सामने पाता है। लेकिन इस तरह विचार करते समय हमें मालों के उत्पादन के सिलसिले में एक सर्वचा पराये मापदण्ड का प्रयोग करना होगा। मालों के उत्पादन में केवल एक दूसरे से स्वतंत्र विक्रेता और प्राहक प्रापस में मिलते हैं। उनके पारस्परिक सम्बंध उनके पापसी करार के समाप्त होने के साथ-साथ बातम हो जाते हैं। यदि यह सौदा दोहराया जाता है, तो एक नया करार करना पड़ता है, जिसका पहले करार से कोई सम्बंध नहीं होता, पौर केवल संयोगवस ही यही विकता फिर उसी प्राहक से ना मिड़ता है। इसलिये, यदि मालों के उत्पादन का या उससे सम्बर किसी जिया का स्वयं उसी के प्रार्षिक नियमों के मापार पर निर्णय होना है, तो हमें प्रत्येक विनिमय-कार्य पर अलग-अलग विचार करना पड़ेगा, और उसके पहले बो विनिमय-कार्य हुमा बामौर उसके बाद वो विनिमय- कार्य होने वाला है, उन दोनों से उसे अलग करके देखना होगा। और चूंकि क्रय और विक्रय व्यक्तियों के बीच होते हैं, इसलिये पीछे समाज के पूरे वर्गों के सम्बंधों को देखना अनुचित होगा। इस बात को पूंजी काम कर रही है, यह नियतकालिक पुनबत्पावनों और पूर्वकालिक संचय-भियानों के चाहे जितने लम्बे कम से गुबर की हो, उसका माविम कौमार्य सवा प्यों का त्यों रहता है। जब तक कि हर अलग-अलग विनिमय-कार्य में विनिमय के नियमों का पालन ,