पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७१६

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पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७१३ सामाजिक संचय की प्रगति के अनुरूप पैमाना प्राप्त कर लेता है। सापेक्ष अतिरिक्त जन-संख्या के निर्माण में इस तत्व का कितना बड़ा महत्व है, यह बात इंगलंग के उदाहरण से स्पष्ट हो जाती है। इंगलैस के पास श्रम की बचत करने के प्रतिविशाल प्राविधिक साधन हैं। फिर भी, यदि कल सुबह से पाम तौर पर केवल विवेकसंगत मात्रा में मजदूरों से मम कराया जाये और पूरे काम को घायु तथा लिंग भेद के अनुसार मजदूर वर्ग के अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया जाये, तो इस समय इंगलैग में जितनी श्रमजीवी जन-संख्या मौजूद है, वह राष्ट्रीय उत्पादन को उसके वर्तमान पैमाने पर चलाने के लिये सर्वथा अपर्याप्त सिद्ध होगी। इस समय के "अनुत्पादक" मजदूरों में से ज्यादातर को तब "उत्पादक" मजदूरों में बदल देना पड़ेगा। यदि मजदूरी के सामान्य उतार-चढ़ाव की सामान्य कियामों की समता पर विचार किया जाये, तो हम देखते हैं कि प्रायोगिक रिचर्व सेना का विस्तार और संकुचन ही अनन्य कम से उनका नियमन करते हैं, और ये विस्तार और संकुचन प्रायोगिक पक के नियतकालिक परिवर्तनों के अनुरूप होते हैं। इसलिये, मजबूरी के उतार-चढ़ाव की ये क्रियाएं इस बात से निर्धारित नहीं होती कि ममजीवियों की निरपेक्ष संख्या में कितनी घटा-बढ़ी हो गयी है, बल्कि . समय तक काम करने के लिये भी राजी होंगे . पुस्तिका में भागे लिखा है : “हम यह प्रश्न करना चाहेंगे कि क्या कुछ मजदूरों से प्रोवरटाइम काम कराने की प्रथा के द्वारा मालिकों और नौकरों के बीच सद्भावना पैदा होगी? जिनसे प्रोवरटाइम काम लिया जाता है , वे भी इसे उतना ही बड़ा अन्याय समझते हैं, जितना वे कारीगर समझते हैं, जिन्हें जबर्दस्ती बेकार बनाकर (condemned to forced idleness) रखा जाता है। हमारे इलाके में लगभग इतना काम है कि यदि उसका ठीक-ठीक बंटवारा किया जाये,तो सभी कारीगरों को प्रांशिक रोजगार मिल सकता है। जब हम मालिकों से यह प्रार्थना करते हैं कि उन्हें मजदूरों के एक हिस्से से मोवरटाइम काम कराने के बजाय, जिसके कारण बाकी मजदूरों को काम के प्रभाव में दान के सहारे जिन्दा रहना पड़ता है, पाम तौर पर हर रोज कम घण्टे काम लेने की प्रथा पर चलना चाहिये और खास तौर पर जब तक हम लोगों के लिये फिर से अच्छे दिन नहीं पा जाते, तब तक इसी प्रणाली का अनुसरण करना चाहिये, तब हम बिल्कुल न्यायोचित मांग करते हैं।" ("Reports of Insp. of Fact., Oct. 31, 1869" [फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८६३'], पृ०८।) “Essay on Trade and Commerce' ('व्यापार और वाणिज्य पर निबंध') के लेखक ने अपनी सामान्य एवं प्रचूक पूंजीवादी सहज बुद्धि से यह बात भली भांति समझ ली है कि काम से लगे मजदूरों पर सापेक्ष अतिरिक्त जन-संख्या का क्या असर होता है। उसने लिखा है : “इस राज्य के लोगों में जो काहिली (idleness) पायी जाती है, उसका एक मोर कारण यह है कि यहां श्रम करने वाले मजदूरों की पर्याप्त संख्या का प्रभाव है जब कभी कारखानों की बनी चीजों की प्रसाधारण मांग के कारण श्रम की कमी महसूस होती है, तब मजदूर खुद अपना महत्त्व महसूस करने लगते है और उसे मालिकों को भी महसूस कराना चाहते हैं,- यह बड़े पाश्चर्य की बात है, मगर इन लोगों की प्रवृत्तियां इतनी दूषित हो गयी है कि ऐसा होने पर अक्सर मजदूरों का कोई दल मालिक को तंग करने के लिये इकट्ठा हो जाता है और वे सब मिलकर पूरा दिन काहिली में बिता देते है।" ("Essay, &c." ['व्यापार और वाणिज्य पर निबंध'], पृ. २७, २८।) ये लोग, असल में, अपनी मजदूरी बढ़वाना चाहते थे। .