पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७२१

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७१८ पूंजीवादी उत्पादन . स्वसंचालित फैक्टरियों में और उसी भांति उन सभी बड़ी वर्कशापों में भी, जहां मशीनें व्यवस्था में प्रवेश कर गयी हैं या जहाँ केवल मानिक ढंग का प्रम-विभाजन होता है, लड़कों को बहुत बड़ी संख्या में नौकर रखा जाता है। प्रद होने के समय तक वहां नौकर रहते हैं। अब एक बार यह अवस्था मा जाती है, तब उनमें से बहुत ही कम ऐसे होते हैं, जिनको उद्योग की उन्हीं शालाओं में काम मिलता है, और उनमें से अधिकतर को प्रोड होते ही नियमित रूम से बास्त कर दिया जाता है। इन मजदूरों का यह अधिकतर भाग बहती हुई अतिरिक्त जन-संख्या का भाग बन जाता है, जो उद्योग की इन शाखामों के विस्तार के साथ-साथ परिमाण में बढ़ता जाता है। उनमें से कुछ देश छोड़कर चले जाते हैं। वे वास्तव में देश छोड़कर चली जाने वाली पूंजी का ही अनुसरण करते हैं। इसका एक नतीजा यह होता है कि पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की पाबादी ज्यादा तेजी से बढ़ती है, जैसा कि हम इंगलैग में देख सकते हैं। यह बात कि मजदूरों की संख्या में जो स्वाभाविक वृद्धि होती है, उससे पूंजी के संचय की पावश्यकताएं पूरी नहीं होती और फिर भी वह हमेशा उनसे ज्यादा रहती है, यह विरोष स्वयं पूंजी की गति के भीतर निहित है। पूंची सवा लड़कों को पहले से बड़ी संख्या में और बयस्कों को पहले से छोटी संख्या में नौकर रखना चाहती है। यह विरोष इस विरोष से अधिक भयानक नहीं है कि एक तरफ तो मजदूरों की कमी का रोना रोया जाता है और उसी के साथ-साथ, दूसरी तरफ, हजारों पादमी बेकार रहते हैं, क्योंकि मम-विभाजन उनको उद्योग की एक खास शाला के साथ बांधे रखता है।' इसके अलावा, पूंजी इतनी तेजी के साथ मन-शक्ति का उपभोग करती है कि मजदूर की भाषी उम्र भी नहीं बीतने पाती, और उसका लगभग सारा सत निकल जाता है। तब वह या तो बेकारों की पति में शरीक हो जाता है और या सीढ़ी पर नीचे उतरकर उसे पहले से निम्न स्तर का कोई काम करने के लिये मजबूर होना पड़ता है। सबसे कम मायु तक बिन्दा रहने वाले लोग हमें माधुनिक उद्योग के मजदूरों में ही मिलते हैं। मानचेस्टर के स्वास्थ्य- अफसर, ग. ली ने बताया कि "मानचेस्टर में ... मध्यवर्ग के लोगों की मृत्यु प्रोसतन ३८ वर्ष की प्रायु में होती है, जब कि भमजीवी वर्ग के लोग पीसतन १७ वर्ष की उम्र में ही मौत का शिकार हो जाते हैं। लिवरपुल में मध्यवर्ग के लोग पीसतन ३५ वर्ष की मायु में और भमजीवी वर्ग के लोग १५ वर्ष की भायु में मर जाते हैं। इससे प्रकट होता है कि साते-पीते वर्गों की बीवन-अवधि (a lease of lite) कम. भाग्यशाली नागरिकों की बीवन-अवधि की दुगनी से भी अधिक होती है। ऐसी परिस्थिति में सर्वहारा के - - 1१८६६ के अन्तिम छः महीनों में लन्दन के प्रस्सी-नव्वे हजार मजदूरों की रोजी छिन गयी थी, पर इसी छमाही की फैक्टरी रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि "यह कहना पूरी तरह सच नहीं प्रतीत होता कि मांग हमेशा ठीक उसी समय पूर्ति को पैदा कर देती है, जिस समय उसकी मावश्यकता होती है ।श्रम की पूर्ति इस तरह नहीं पैदा हो सकी है, क्योंकि पिछले वर्ष बहुत सारी मशीनें मजदूरों के प्रभाव के कारण बेकार पड़ी रही है।" ("Rep. of Insp. of Fact., 31st Oct., 1866" ["फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८६६'], पृ.८१1) 'सफाई-सम्मेलन , विर्मिषम , १५ जनवरी १८७५ का उद्घाटन भाषण ; शहर के मेयर और माजकल (१८५३ में) व्यापारबोर्ड के अध्यक्ष के. चैम्बरलेन द्वारा।