पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७२४

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पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७२१ रहती किबो काम उनको मिल सकता है, उसको कर सकें, और वो अपनी प्रममता के सामने सिर झुका देते हैं। ये लोग होते हैं, जिनकी माय मजदूर की सामान्य मायु से मागे निकल गयी है। इनमें उद्योग के मारे हुए लोग-अपंग, रोगी, विषवाएं प्रावि-भी शामिल होते हैं, जिनकी संस्था खतरनाक मशीनों, सानों, रासायनिक कारखानों पावि की पृदि के सार-साथ बढ़ती जाती है। कंगाली सक्रिय भमिक सेना का अस्पताल और प्रौद्योगिक रिवर्व सेना के गले का पत्थर होती है। सापेक्ष अतिरिक्त मन-संस्था पैदा होती है, तो उसके साप-साथ कंगाल भी पैदा होते जाते हैं। जैसे सापेक्ष अतिरिक्त जन-संख्या का होना पावश्यक है, वैसे ही कंगालों का होना भी मावश्यक है। अतिरिक्त जनसंख्या के साथ-साथ कंगाली का होना भी पूंजीवादी उत्पादन की और धन के पूंजीवादी विकास की एक प्रावश्यक शर्त है । वह पूंजीवादी उत्पादन के faux frals (अनुत्पादक व्यय) का भाग है, परन्तु पूंजी इस बर्षे को -या उसके अधिकतर भागको- अपने कंधों से हटाकर मजदूर वर्ग के और निम्न मध्य वर्ग के कंधों पर गल देने का तरीका मानती है। सामाजिक धन, कार्यरत पूंची, उसके विकास का विस्तार तथा तेजी और इसलिये सर्वहारा की निरपेक संस्था तथा उसके मन की उत्पादकता जितनी बढ़ती जाती है, प्रौद्योगिक रित सेना का भी उतना ही विस्तार होता जाता है। जिन कारणों से पूंजी के विस्तार की शक्ति बढ़ती है, उन्हीं कारणों से पूंजी के इस्तेमाल के लिये सदा तैयार रहने वाली श्रम-शक्ति भी बढ़ती जाती है। इसलिये, प्रौद्योगिक रिव सेना का सापेक्ष परिमाण धन की संभावी किया-शक्ति के साथ-साथ बढ़ता जाता है। परन्तु सक्रिय श्रमिक सेना के अनुपात में यह रिवर्व सेना जितनी बड़ी होती है, उतनी ही विशाल एक समेकित अतिरिक्त जन-संस्था तैयार होती जाती है, जिसकी गरीबी उसकी मेहनत की यातना के प्रतिलोम अनुपात में होती है। और, अन्त में, मजदूरवर्ग का यह कंगाल स्तर और प्रौद्योगिक रिजर्व सेना जितने बड़े होते हैं, सरकारी कागजों में उतने ही प्रषिक मुहताज वर्ष होते हैं। यह पूंजीवादी संचय का निरपेन सामान्य नियम है। अन्य समी नियमों की तरह यह नियम भी जब व्यवहार में माता है, तब उसमें ऐसी बहुत सी बातों के फलस्वरूप कुछ संशोधन हो जाता है, जिनका यहां विश्लेषण करने की बरत प्रब प्रर्वशास्त्र के उन पण्डितों की मूर्खता बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है, जो मजदूरों से यह कहा करते हैं कि उनको अपनी संस्था को सबा पूंजी की मावश्यकताओं के अनुरूप बनाते रहना चाहिये। पूंजीवावी उत्पादन और संचय का मंत्र तो स्थायी रूप से इस व्यवस्थापन को अपनी पावश्यकता के अनुसार प्रभावित करता रहता है। इस अनुकूलन की पुस्तक का पहला सम यह है कि एक सापेक्ष अतिरिक्त बन-संस्था अथवा प्रौद्योगिक रिवर्व सेना पैदा कर दी जाती है। उसका पाखिरी शब है भमिकों की सक्रिय सेना के लगातार बढ़ते हुए हिस्सों की गरीबी और उनके गले में लटका हुमा मुहताची का पत्थर। विस नियम के अनुसार सामाजिक श्रम की उत्पादकता के विकास के फलस्वरूप उत्तरोत्तर कम मानव-शक्ति सर्च करके उत्पादन के साधनों की अधिकाधिक बड़ी मात्रा को गतिमान बनाना सम्भव होता है, वह नियम पूंजीवादी समाज में, वहां मजदूर उत्पादन के साधनों नहीं लेता, बल्कि उत्पादन के साधन मवर से काम लेते हैं, बिल्कुल उल्टा म पारण कर लेता है। पूंजीवादी समाज में यह नियम इस प्रकार व्यक्त होता है कि श्रम की उत्पादकता जितनी वादा होती है, उत्पादन के सापनों पर मजदूरों का स्वाद उतना ही बढ़ जाता है और इसलिये . 46-45