पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८५८

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पूंजीवादी संचय की ऐतिहासिक प्रवृत्ति ८५.५ रूपान्तरण की यह मिया जैसे ही पुराने समाज को उपर से नीचे तक काफी छिन्न-भिन्न कर देती है, मजबूर जैसे ही सर्वहारा बन जाते हैं और उनके मन के साधन पूंजी में मान्तरित हो जाते हैं, पूंजीवादी उत्पादन-प्रणाली खुब जैसे ही अपने पैरों पर खड़ी हो जाती है, वैसे ही मम का और अधिक सामाजीकरण करने का प्रश्न, भूमि तथा उत्पादन के अन्य साधनों को सामाणिक ढंग से व्यवहारित सापनों में और इसलिये सामूहिक साधनों में और भी अधिक स्पान्तरित कर देने का प्रश्न और साथ ही निजी सम्पत्ति के मालिकों की सम्पत्ति का प्रषिक अपहरण करने का प्रश्न एक नया म धारण कर लेते हैं। अब जिसका सम्पत्ति- अपहरण करना प्रावश्यक हो जाता है, वह खुद अपने लिये काम करने वाला मजदूर नहीं है, बल्कि वह है बहुत से मजदूरों का शोषण करने वाला पूंजीपति । यह सम्पत्ति-अपहरण स्वयं पूंजीवादी उत्पादन के अन्तर्भूत नियमों के अमल में पाने के फलस्वरूप पूंजी के केन्द्रीयकरण के द्वारा सम्पन्न होता है। एक पूंजीपति हमेशा बहुत से पूंजीपतियों की हत्या करता है। इस केन्द्रीयकरण के साथ-साथ, या यूं कहिये कि कुछ पूंजीपतियों द्वारा बहुत से पूंजीपतियों के इस सम्पत्ति-अपहरण के साथ-साव, अधिकाधिक बढ़ते हुए पैमाने पर बम-निया का सहकारी स्वरूप विकसित होता जाता है, प्राविधिक विकास के लिये सचेतन ढंग से विज्ञान का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है, भूमि को उत्तरोत्तर प्रषिक सुनियोजित ढंग से बोता-बोया जाता है, श्रम के पोसार ऐसे प्रोबारों में बदलते जाते हैं, जिनका केवल सामूहिक ढंग से ही उपयोग किया जा सकता है, उत्पादन के साधनों का संयुक्त , सामाजीकृत भन के साधनों के रूप में उपयोग करके हर प्रकार के उत्पादन के साधनों का मितव्ययिता के साथ इस्तेमाल किया जाता है, सभी कौमें संसार-व्यापी मण्डी के जाल में फंस जाती है और इसलिये पूंजीवादी शासन का स्वरूप अधिकाधिक अन्तरराष्ट्रीय होता जाता है। मान्तरण की इस क्रिया से उत्पन्न होने वाली समस्त सुविधाओं पर जो लोग सबस्ती अपना एकाधिकार कायम कर लेते हैं, पूंची के उन बड़े-बड़े स्वामियों की संख्या यदि एक पोर बराबर घटती जाती है, तो दूसरी मोर, गरीबी, अत्याचार, गुलामी, पतन पोर शोषण में लगातार वृद्धि होती जाती है। लेकिन इसके साब-साथ मजबूस्वर्ग का विद्रोह भी अधिकाधिक तीव होता जाता है। यह वर्ग संख्या में बराबर बढ़ता जाता है और स्वयं पूंजीवादी उत्पावन-भिया का यंत्र ही उसे प्रषिकाषिक अनुशासन-पर, एकजुट और संगब्ति करता जाता है। पूंजी का एकाधिकार उत्पादन की उस प्रणाली के लिये एक बन्धन बन जाता है, जो इस एकाधिकार के साथ-साथ और उसके अन्तर्गत जन्मी है और फूली-फली है। उत्पादन के साधनों का केनीयकरण और श्रम का सामाजीकरण अन्त में एक ऐसे बिंदु पर पहुंच जाते हैं, वहां वे अपने पूंजीवादी सोल के भीतर नहीं रह सकते। बोल फार दिया जाता है। पूंजीवादी निजी सम्पत्ति की मौत की घन्टी बन उठती है। सम्पत्ति-अपहरण करने वालों की सम्पत्ति का अपहरण हो जाता है। हस्तगतकरण की पूंजीवावी प्रणाली, बो कि उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली का फल होती है, पूंजीवादी निजी सम्पत्ति को जन्म देती है। जब मालिक के बम पर प्राधारित व्यक्तिगत निजी सम्पत्ति का इस प्रकार पहली बार मिवेष होता है। परन्तु पूंजीवादी उत्पादन प्रकृति के नियनों की निर्ममता के साथ पर अपने निवेष को जन्म देता है। यह निवेष का निवेष होता है। इससे उत्पादन के लिये निजी सम्पत्ति की पुनस्थापना नहीं होती, किन्तु उसे पूंजीवादी युग की उपलब्धियों पर प्राचारित-पत् सहकारिता पौर भूमि संवा उत्पादन के साधनों के सामूहिक स्वामित्व पर प्राचारित-व्यक्तिगत सम्पत्ति मिल जाती है। . . .