पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१०४

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परिपथ के तीन सूत्र १०३ ऐसे आमूल परिवर्तन जितने ही अधिक तीव्र और प्रायिक होते जाते हैं, अव स्वतंत्र मूल्य की स्वतःचालित गति वैयक्तिक पूंजीपति की दूरंदेशी और उसके अनुमान के ख़िलाफ़ नैसर्गिक प्रक्रिया की तात्विक शक्ति के साथ उतनी ही अधिक चलती है, उतना ही सामान्य उत्पादन का सिलसिला असामान्य अटकलवाजी के अधीन होता जाता है और वैयक्तिक पूंजियों के अस्तित्व के लिए खतरा उतना ही वढ़ता जाता है। अतः मूल्य के ये प्रावधिक आमूल परिवर्तन उस वात की पुष्टि करते हैं, जिसका खंडन करने की उनसे अपेक्षा की जाती है और वह यह कि पूंजी के रूप में मूल्य स्वतंत्र अस्तित्व प्राप्त कर लेता है, जिसे वह अपनी गति द्वारा कायम रखता है और व्यक्त करता है। प्रक्रिया के दौरान पूंजी के रूपांतरणों के इस. अनुक्रमण में आद्य मूल्य के साथ परिपथ में आये पूंजी के मूल्य के परिमाण में परिवर्तन की निरंतर तुलना समाहित है। यदि मूल्य द्वारा मूल्य सर्जक शक्ति से , श्रम शक्ति से स्वाधीनता की प्राप्ति द्र श्र क्रिया ( श्रम शक्ति की ख़रीद ) द्वारा शुरू होती है और उत्पादन प्रक्रिया के दौरान श्रम शक्ति के शोपण के रूप में चरितार्थ होती है, तो मूल्य द्वारा यह स्वाधीनता प्राप्ति उस परिपथ में पुनः प्रकट नहीं होती, जिसमें द्रव्य , माल और उत्पादन तत्व प्रक्रिया के अंतर्गत पूंजी मूल्य के प्रत्यावर्ती रूप मान होते के पूर्वपरिमाण की तुलना पूंजी वर्तमान परिवर्तित मूल्य परिमाण से की हैं और मूल्य जाती है। - वेली मूल्य द्वारा स्वाधीनता प्राप्ति का , जो पूंजीवादी उत्पादन पद्धति की विशेषता है और जिसे वह कुछ अर्थशास्त्रियों का विभ्रम मानते हैं , विरोध करते हुए कहते हैं , “मूल्य समकालिक पण्य वस्तुओं के बीच संबंध है, क्योंकि ऐसे माल एक दूसरे से विनिमय किया जाना ही स्वीकार करते हैं।" यह बात वह विभिन्न युगों के माल मूल्यों की तुलना के विरोध में कहते हैं, जो एक वार प्रत्येक कालावधि के लिए द्रव्य मूल्य निश्चित कर लेने के बाद एक ही प्रकार के मालों के उत्पादन के लिए विभिन्न कालावधियों में आवश्यक श्रम की तुलना करने जैसी ही होती है। यह निष्कर्ष उनकी सामान्य भ्रान्ति से पैदा होता है, क्योंकि उनके विचार में विनिमय मूल्य मूल्य के वरावर है , मूल्य का रूप स्वयं मूल्य है ; फलतः अगर माल मूल्य सक्रिय विनिमय मूल्यों की हैसियत से कार्य न करें, और इस प्रकार वास्तव में उनका एक दूसरे से विनिमय न किया जा सके , तो माल मूल्यों की तुलना भी नहीं की जा सकेगी। उन्हें इस तथ्य का तनिक भी प्राभास नहीं है कि मूल्य पूंजी मूल्य अथवा पूंजी की हैसियत से तभी कार्य करता है, जब वह अपने परिपथ के विभिन्न दौरों में- जो “समकालिक" क़तई नहीं होते, वरन एक दूसरे के वाद आते हैं - अपने से तद्रूपता बनाये रखता है और उसकी अपने से ही तुलना की जाती है। परिपथ सूत्र का विशुद्ध रूप अध्ययन करने के लिए यह मान लेना पर्याप्त नहीं है कि पण्य वस्तुएं अपने मूल्य पर वेची जाती हैं; यह भी मानना होगा कि ऐसा और सभी परिस्थितियों के यथावत रहने पर होता है। उदाहरण के लिए, उ उ रूप लें। उत्पादन , Bailey, Samuel, A Critical Dissertation on the Nature, Measures and Causes of Value; Chiefly in Reference to the Writings of Mr. Ricardo and His Followers. By the Author of Essays on tbe Formation and Publication of Opinions, London, 1825, p. 72.- #0