पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१०५

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१०४ जो मे रूपांतरण और उनके परिपय - 1 1 प्रक्रिया के भीतर उन तमाम प्राविधिक प्रान्तियों को नजरअंदाज करते हुए , जिनके द्वारा किसी पूंजीपति की उत्पादक पूंजी का मूल्य ह्रास हो सकता है। इसके अलावा उत्पादक पूंजी के मृत्य के तत्वों में परिवर्तन होने से विद्यमान माल पूंजी के मूल्य में जो प्रतिक्रिया हो सकती है, जो भधार मुलम होने पर बड़ अथवा घट सकता है, को भी नजरअंदाज़ करते हुए उ व्प को तो लीजिये। मान लीजिये , १०,००० पाउंड मूत , मा' अपने ५०० पाउंड मूल्य पर बैन दिया गया है ; मा' में समाहित पूंजी मूल्य की ४२२ पाउंड का ८,४४० पाउंड सूत प्रतित्यापना करता है। किंतु यदि कपास , कोयले , आदि का मूल्य बढ़ गया हो ( हम मात्र भाव के उतार-चढ़ाव पर ध्यान नहीं देते ), तो संभव है कि उत्पादक पूंजी के तत्वों के पूर्ण प्रतिस्थापन के लिए ये ४२२ पाउंड पर्याप्त न हों; अतिरिक्त द्रव्य पूंजी दरकार होगी पूंजी बंध जाती है। जब ये भाव गिरते हैं , तब इसका उलटा होता है। द्रव्य पूंजी मुक्त हो जाती है। यह प्रक्रिया पूर्णतः सामान्य मार्ग तभी पकड़ती है, जब मूल्य संबंध स्थिर बने रहते हैं और जब तक परिपय की प्रावृत्तियों के दौरान आनेवाले व्यवधान एक दूसरे को संतुलित किये रहते हैं, तब तक वह व्यवहारतः मामान्य बना रहता है। किंतु ये व्यवधान जितने अधिक होंगे, प्रौद्योगिक पूंजीपति के पास पुनःव्यवस्थापन काल को पार करने के लिए उतनी ही अधिक द्रव्य पूंजी का होना आवश्यक होगा। चूंकि पूंजीवादी उत्पादन प्रक्रिया में प्रत्येक पृथक उत्पादन प्रक्रिया का पैमाना और उसके साथ पेशगी दी जानेवाली पूंजी का न्यूनतम आकार बढ़ता है , अतः यहां उन परिस्थितियों में एक परिस्थिति और जुड़ जाती है, जो प्रोद्योगिक पूंजीपति के कार्य को अधिकाधिक बड़े द्रव्य पूंजीपतियों के एकाधिकार में परिवर्तित करती जाती हैं, जो पृथक अथवा संघ रूप में काम कर सकते हैं। यहां हम प्रसंगवश यह भी कह देते हैं कि उत्पादन तत्वों के मूल्य में यदि परिवर्तन हो, तो एक अोर द्र द्र' के रूप में, और दूसरी ओर उ उ तथा मा' रूप में भी भेद उत्पन्न हो जाता है। द्र द्र' में उस नई लगाई पूंजी के मूत्र में , जो पहले द्रव्य पूंजी की हैसियत से प्रकट होती है, उत्पादन साधनों, यया कच्चा माल , सहायक सामग्री, इत्यादि , के मूल्य में गिरावट आने से पहले की अपेक्षा एक निश्चित प्रकार का व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए द्रव्य पूंजी का न्यूनतर व्यय संभव हो जायेगा, क्योंकि उत्पादन प्रक्रिया का पैमाना ( उत्पादक शक्ति का विकास एक सा बना रहे, तो) उत्पादन साधनों की उस राशि और परिमाण पर निर्भर होता है, जिसे श्रम शक्ति की एक नियत माना व्यवहार में ला सकती है ; किंतु वह इन उत्पादन साधनों के मूल्य पर निर्भर नहीं होता , न श्रम शक्ति के मूल्य पर निर्भर होता है (श्रम शक्ति का मूल्य केवल स्वप्रसार के परिमाण को प्रभावित करता है ) । अब इससे उलटी स्थिति लें। यदि मालों के उत्पादन के उन तत्वों के मूल्य में वृद्धि हो, जो उत्पादक पूंजी के तत्व हैं, तो नि- रिचत परिमाण के व्यवसाय की स्थापना के लिए और ज्यादा द्रव्य पूंजी अावश्यक होगी। दोनों ही स्थितियों में नये निवेश के लिए आवश्यक द्रव्य पूंजी की राशि ही प्रभावित होगी। पहली स्थिति में द्रव्य पूंजी अतिरिक्त बन जाती है, और दूसरी स्थिति में वह बंध जाती है, वणर्ते कि उत्पा- दन की नियत शाखा में नई वैयक्तिक प्रौद्योगिक पूंजी की सामान्य रूप में अनुवृद्धि होती रहे। उ...उ तथा मा' ... मा' परिपय अपने को उसी हद तक द्र ... द्र' के रूप में मा' के -