पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पंजी के रूपांतरण और उनके परिपय . उसा यदि मा' - होने से पहले ऐसा परिवर्तन हो जाये, तो अन्य परिस्थितियों के यथावत् रहने पर कपाल की कीमत गिरने से उसी के अनुरूप सूत का भाव भी गिरेगा। इसके विपरीत कपास की कीमत के बढ़ने का अर्थ होगा भूत का भाव चढ़ना। उत्पादन की एक ही शाया में जिन विविध वैश्तियः पृजियों का निवेश हुग्रा है, उन पर वे जिन परिस्थितियों में हैं , उसके अनुसार पढ़नेवाले इस प्रभाव में बड़ी भिन्नता हो सकती है। परिचलन प्रक्रिया की अवधि में अंतर पड़ने, अतः परिचलन की रफ्तार में अंतर पड़ने में भी, द्रव्य पूंजी बंध सकती अथवा मुक्त हो सकती है। पर यह सब प्रावतं संबंधी विवेचन में प्राता है। यहां हमारा केवल उस वास्तविक भेद से सरोकार है, जो उत्पादक पूंजी के तत्वों के मूल्यों के परिवर्तन के सिलसिले में द्र द्र' तथा अन्य दो परिपथ रूपों के बीच प्रत्यक्ष होता है। उत्पादन की पूंजीवादी पद्धति के विकसित हो चुकने और इसलिए प्रचलित पद्धति बन चुकने ध युग में परिचलन खंड द्र- मा <. में उ सा, उत्पादन साधनों, में समाहित मालो का एक बड़ा भाग स्वयं किसी दूसरे की माल पूंजी की हैसियत से कार्य करता होता है। अतः विक्रेता के दृष्टिकोण से मा' - द्र', माल पूंजी का द्रव्य पूंजी में रूपांतरण होता है। किंतु यह निरपेक्ष नियम नहीं है। असलियत इसके विपरीत ही है। अपनी परिचलन प्रक्रिया के भीतर, जिसमें प्रौद्योगिक पूंजी या तो द्रव्य की या मालों की तरह कार्य करती है, प्रौद्योगिक पूंजी का परिपय , चाहे द्रव्य पूंजी की , और चाहे माल पूंजी की हैसियत से , सामाजिक उत्पादन की - जहां तक वे पण्य वस्तुएं उत्पादित करती हैं - नितांत भिन्न पद्धतियों के माल परिचलन को पार कर जाता है। पण्य वस्तुएं जिस उत्पादन की देन हैं, वह चाहे दास प्रथा पर आधारित हो, चाहे कृषक उत्पादन हो (चीनी, हिंदुस्तानी रयत ), चाहे सामुदायिक हो (डच ईस्ट इंडीज), चाहे राजकीय व्यवसाय हो (जैसा कि रूसी इतिहास के पूर्व युगों में भूदास प्रथा के आधार पर था) अथवा चाहे अद्धवन्य , पाखेटक क़वीलों, आदि का हो- पण्य वस्तुओं और द्रव्य की हैसियत से वे उस द्रव्य और उन पण्य वस्तुओं के सामने आती हैं, जिनमें प्रौद्योगिक पूंजी अपने को प्रस्तुत करती है और वे उसके परिपथ में वैसे ही प्रवेश करती हैं, जैसे माल पूंजी में वाहित बेशी मूल्य के परिपथ में, बशर्ते कि वेशी मूल्य को प्राय की तरह खर्च किया जाये। इस प्रकार वे माल पूंजी के परिचलन की दोनों शाखाओं में प्रवेश करती हैं। जिस उत्पादन प्रक्रिया से उनका उद्भव हुअा है, उसका स्वरूप कोई महत्व का नहीं। बाजार में वे मालों की हैसियत से कार्य करती हैं, और मालों की हैसियत से ही वे प्रौद्योगिक पूंजी के परिपथ में तथा उसमें समाविष्ट वेशी मूल्य के परिचलन में प्रवेश करती हैं। अतः प्रौद्योगिक पूंजी की परिचलन प्रक्रिया की विशेषता मालों के उद्भव के साविक स्वरूप से , विश्व बाज़ार के रूप में बाजार के अस्तित्व से मूचित होती है। जो वात दूसरों के माल के बारे में सही है, वह दूसरों के द्रव्य के बारे में भी सही है। जैसे माल पूंजी सिर्फ पण्य वस्तुओं की तरह ही द्रव्य के सामने ग्राती है, वैसे ही माल पूंजी के मुकाबले यह द्रव्य केबल द्रव्य पूंजी की तरह ही काम करता है। यहां द्रव्य विश्व द्रव्य के कार्य करता है। किंतु यहां दो बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। .