पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१०८

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परिपथ के तीन सूत्र १०७ . , . पहले , जैसे ही द्र उ सा क्रिया पूरी होती है, माल (उ सा) इसी रूप में नहीं रह जाते ; वे उत्पादक पूंजी , उसके उ के कार्य रूप में प्रौद्योगिक पूंजी के अस्तित्व की एक पद्धति बन जाते हैं। किंतु इससे उनका मूल विलुप्त हो जाता है। अव से वे औद्योगिक पूंजी के अस्तित्व के रूपों की तरह ही विद्यमान होते हैं, उसमें समाविष्ट होते हैं। फिर भी यह बात सच वनी रहती है कि उन्हें प्रतिस्थापित करने के लिए उन्हें पुनरुत्पादित किया जाना होता है और इस हद तक उत्पादन की पूंजीवादी पद्धति उत्पादन की उन पद्धतियों से प्रतिवद्ध है, जो उसके विकास की अपनी मंजिल के वाहर हैं। किंतु उत्पादन की पूंजीवादी पद्धति की यह प्रवृत्ति है कि जहां तक बन पड़े, सारे उत्पादन को माल उत्पादन में बदल दे। जिस मुख्य उपकरण द्वारा यह संपन्न किया जाता है, वह पूंजीवादी परिचलन प्रक्रिया में समस्त उत्पादन का समेट लिया जाना ही है! और विकसित माल उत्पादन स्वयं पूंजीवादी माल उत्पादन है। प्रौद्योगिक पूंजी का हस्तक्षेप इस रूपांतरण का हर जगह संवर्धन करता है, किंतु इसके साथ सारे प्रत्यक्ष उत्पादकों के उजरती थमिकों में रूपांतरण को भी बढ़ावा देता है। दूसरे, प्रौद्योगिक पूंजी की परिचलन प्रक्रिया में प्रवेश करनेवाले माल (आवश्यक निर्वाह साधनों सहित , जिनमें परिवर्ती पूंजी श्रमिकों चुकाये जाने के बाद उनकी श्रम शक्ति का पुनरुत्पादन करने के लिए रूपांतरित होती है), चाहे उनका उद्भव कोई भी हो और उन्हें अस्तित्व में लानेवाली उत्पादक प्रक्रिया का सामाजिक रूप कोई भी हो, पहले ही माल पूंजी के रूप में माल विक्रेता अथवा व्यापारी की पूंजी के रूप में विद्यमान स्वयं प्रौद्योगिक पूंजी के सामने आते और व्यापारी की पूंजी में उसकी प्रकृति से ही उत्पादन की सभी पद्धतियों के माल समाहित होते हैं। उत्पादन की पूंजीवादी पद्धति बड़े पैमाने पर उत्पादन की ही नहीं, वरन अनिवार्यतः बड़े पैमाने पर विक्री की भी और इसलिए अलग-अलग उपभोक्ता के हाथ नहीं, बल्कि व्यापारी के हाथ विक्री की भी पूर्वकल्पना करती है। यदि यह उपभोक्ता स्वयं उत्पादक उपभोक्ता और इसलिए प्रौद्योगिक पूंजीपति हो, अर्थात यदि उत्पादन की एक शाखा की प्रौद्योगिक पूंजी उद्योग को किसी दूसरी शाखा को उत्पादन साधन देती हो, तो एक प्रौद्योगिक पूंजीपति द्वारा दूसरों को प्रत्यक्ष विक्री (आर्डर, आदि के रूप में ) संम्पन्न होती है। इस सीमा तक प्रत्येक प्रौद्योगिक पूंजीपति प्रत्यक्ष विक्रेता होता है और स्वयं अपना ही व्यापारी होता है, जो वह प्रसंगतः तव भी होता है कि जब वह किसी व्यापारी को माल वेचता है। व्यापारी की पूंजी के कार्य की हैसियत से मालों का व्यापार पूंजीवादी उत्पादन का एक पूर्वाधार है और इस तरह के उत्पादन के विकास के दौरान वह अधिकाधिक विकसित होता जाता है। अतः पूंजीवादी परिचलन प्रक्रिया के विशेष पक्षों को दर्शाने के लिए हम उसके अस्तित्व को कभी-कभी मान लेते हैं। किंतु इस प्रक्रिया के सामान्य विश्लेषण में हम प्रत्यक्ष विक्री कल्पित करते हैं, जहां व्यापारी का हस्तक्षेप नहीं होता , क्योंकि यह हस्तक्षेप गति के विभिन्न पहलुओं को अस्पप्ट बना देता है। इसकी सीसमांडी से तुलना करें, जो वात को जरा भोलेपन से प्रस्तुत करते हैं : "वाणिज्य काफ़ी पूंजी उपयोग में लाता है, जो पहली निगाह में उस पूंजी का भाग नहीं जान पड़ती, जिसकी गति का वर्णन हम कर चुके हैं। कपड़ा व्यापारी के गोदामों में जमा कपड़े का मूल्य पहली निगाह में वार्पिक उत्पादन के उस भाग से पूर्णतः भिन्न प्रतीत होता है, जिसे धनी आदमी गरीब को मजदूरी के रूप में इसलिए देता है कि वह काम करे। किंतु इस पूंजी .