पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१०९

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जीरे मातरण पीर उनमें परिपय 14 जब . में जमदनगे पंजी को प्रनित्यापित ही किया है, जिसका हम उल्लेख कर चुके है। धन की प्रगति गार-मार नमाने के लिए हमने शुरुमात उसके सृजन से की है और उसके उपभोग का हमारा प्रनगरम किया है। तब , उदाहरण के लिए, कपड़ा बनाने में लगाई गई पूंजी हमें मा बेनी ही दिखाई देती थी और जब उपभोक्ता की प्राय से उसका विनिमय हुग्रा, तय का चल दो हिस्सों में बंटी थी, जिनमें से एक मुनाफ़े के रूप में निर्माता की आय बन गया या मोर दूसरा हिस्सा मजदूरी के रूप में श्रमिकों की उतने समय की प्राय था, जिसमें वे नया रवा बना रहे थे। 'रिंतु शीघ्र ही पता चला कि यदि इस पूंजी के विभिन्न भाग एक दूसरे को प्रतिस्थापित कर दें पोर यदि निर्माता और उपभोक्ता के बीच समस्त परिचलन के लिए १,००,००० एफ. कारी हो, तो उन्हें निर्माता , योक व्यापारी और खुदरा व्यापारी के बीच बराबर-बरावर बांट दिया जाना सभी के लिए लाभदायी रहेगा। इस पूंजी के एक तिहाई हिस्से से पहले निर्माता ने तब यही काम किया, जो पहले उसने समूची पूंजी से किया था, क्योंकि जैसे ही उसका कपड़ा बनाने का काम ग़त्म हुअा, तो उसने देखा कि उससे उपभोक्ता नहीं, बल्कि व्यापारी ही मरीद करेगा। दूसरी ओर , योक व्यापारी की पूंजी खुदरा व्यापारी की पूंजी से कहीं जल्दी प्रतिस्थापित हो गई मजदूरी के लिए पेशगी दी गई रकम और अंतिम उपभोक्ता द्वारा चुकाये ग्रय मूल्य के अंतर को इन पूंजियों का मुनाफ़ा मान लिया गया था। वह निर्माता, थोक व्यापारी और गुदरा व्यापारी के बीच उसी क्षण से बंट गया था, उन्होंने अपने कार्य ग्रापस में बांट लिये थे, और किया गया काम एक ही था, यद्यपि उसके लिए एक की जगह तीन व्यक्ति और पूंजी के तीन हिस्से आवश्यक हुए थे" (Nouveaux Principes, १, पृष्ठ १३६ पोर १४०)। 'उन सभी [ व्यापारियों ने उत्पादन में अप्रत्यक्ष योगदान किया था। चूंकि उसका लक्ष्य उपभोग है, इसलिए उत्पादन तब तक पूर्ण हुअा नहीं माना जा सकता, जब तक उत्पादिन वस्तु उपभोक्ता की पहुंच के भीतर न पहुंचा दी जाये" (वही, पृष्ठ १३७ ) । परिपथ के मामान्य रूपों के विवेचन में , और सामान्यतः समूचे दूसरे खंड में हमने द्रव्य को, प्रतीक मुद्रा, जो कुछेक राज्यों में विशिष्ट उपभोग के लिए उद्दिष्ट मूल्य के प्रतीक मात्र होते हैं, और माग द्रव्य , जो अभी विकसित नहीं हुआ है, को छोड़कर धातु मुद्रा के अर्थ में लिया है। पहली बात तो यही है कि यह ऐतिहासिक क्रम है ; पूंजीवादी उत्पादन के प्रथम युग में माग द्रव्य की भूमिका अत्यल्प होती है अथवा होती ही नहीं। दूसरे , सैद्धांतिक रूप में इस क्रम की आवश्यकता इस तथ्य से प्रदर्शित होती है कि ट्रक , प्रादि साख द्रव्य के परिचलन के बारे में अब तक पालोचनात्मक ढंग से जो कुछ भी कहते आये थे, उसने उन्हें वारवार इसी प्रश्न की तरफ़, ध्यान देने के लिए विवश किया कि यदि परिचलन में धातु मुद्रा के अलावा और कुछ न हो, तो स्थिति कैसी होगी। किंतु यह न भूलना चाहिए कि धातु मुद्रा खरीद के और भुगतान के माध्यम का भी काम कर सकती है। सरलता के लिए इस दूसरे खंड में हम प्राम तौर से उनके प्रथम कार्य रूप को लेकर ही उस पर विचार करते हैं। प्रोद्योगिक पंजी के परिचलन की प्रक्रिया , जो उसके वैयक्तिक परिपथ का अंश मात्र है , पूर्ववर्णित मामान्य नियमों द्वारा निर्धारित होती है (Buch I, Kap. III) • , जहां तक कि वह मानों के सामान्य परिचलन के अंतर्गत क्रियानों की शृंखला मान है। द्रव्य की गति जितनी नीत होती है. पोर इमलिए जितनी तेजी से प्रत्येक वैयक्तिक पूंजी अपने माल अथवा द्रव्य •हिन्दी संस्करण: अध्याय 1-सं० . - 1 1