पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/११०

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परिपथ के तीन सूत्र १०६ रूपांतरणों की शृंखला से गुजरती है, एक निश्चित द्रव्य राशि , उदाहरण के लिए, ५०० पाउंड द्वारा क्रमशः परिचलन शुरू करनेवाली प्रौद्योगिक पूंजियों ( अथवा माल पूंजियों के रूप में वैयक्तिक पूंजियों ) की संख्या उतनी ही अधिक होती है। इसलिए द्रव्य जितना ज्यादा भुगतान के माध्यम का काम करता है - उदाहरण के लिए, किसी माल पूंजी की उसके उत्पादन साधनों द्वारा प्रतिस्थापना में - उतना ही वस संतुलनों को दुरुस्त करना ही रह जाता है और भुगतान के लिए कालावधियां जितना ही छोटी होती हैं , यथा मजदूरी देने में , उतना ही पूंजी मूल्य की नियत राशि को अपने परिचलन के लिए कम द्रव्य की आवश्यकता होती है। दूसरी ओर यह मान लेने पर कि परिचलन की रफ्तार और अन्य सभी परिस्थितियां समान रहती हैं, द्रव्य पूंजी की हैसियत से द्रव्य की जितनी मात्रा परिचलन के लिए दरकार होती है, वह मालों की कीमतों के योग ( मालों की मात्रा से गुणित क़ीमत ) द्वारा और यदि मालों का मूल्य और परिमाण स्थिर हों, तो स्वयं द्रव्य के मूल्य द्वारा निर्धारित होती है। किंतु मालों के सामान्य परिचलन के नियम तभी लागू होते हैं, जब पूंजी की परिचलन प्रक्रिया में परिचलन की साधारण क्रियाओं की शृंखला समाहित होती है, ये तब लागू नहीं होते , जब परिचलन की ये साधारण क्रियाएं वैयक्तिक प्रौद्योगिक पूंजियों के परिपथ के कार्यतः निर्धारित खंड बन जाती हैं। यह स्पष्ट करने के लिए परिचलन प्रक्रिया का उसकी अविच्छिन्न अंतसंबद्धता में अध्ययन करना सबसे अच्छा होगा, जैसे वह इन दो निम्न रूपों में प्रकट होती है : मा द्र-मार श्र उ (उ) २) उ... मा' द्र' . उसा मा द्र-मा मा- द्र- मा < श्र मा उ सा ३) मा' द्र मा द्र-मा सामान्य रूप परिचलन क्रियाओं की श्रृंखला की हैसियत से परिचलन प्रक्रिया ( चाहे मा-द्र- मा के रूप में, चाहे द्र मा द्र के रूप में) केवल माल रूपांतरणों की दो विरोधी शृंखलाएं व्यक्त करती है। अपनी वारी में इनमें से प्रत्येक में माल के सामने आनेवाले भिन्न माल अथवा भिन्न द्रव्य का विपरीत रूपांतरण सन्निहित होता है। माल के मालिक के लिए जो मा -द्र है, वह ग्राहक के लिए द्र-मा है। मा में माल का पहला रूपांतरण द्र रूप में प्रकट होनेवाले माल का दूसरा रूपांतरण है। इससे मा पर लागू होती है। एक मंजिल में किसी माल के रूपांतरण से दूसरी मंजिल में किसी अन्य माल के रूपांतरण के अंतर्गथन के बारे में जो कुछ बताया गया है, वह पूंजी के परिचलन पर भी लागू होता है, जहां तक कि पूंजीपति मालों के ग्राहक और विक्रेता के कार्य करता है, और इस कारण उसकी पूंजी दूसरे के मालों के मूकावले द्रव्य रूप में अथवा दूसरे के द्रव्य के मुकावले मालों के रूप में कार्य करती है। किंतु इस अंतग्रंथन को पूंजियों के रूपांतरणों का अंतर्ग्रथन न मान लेना चाहिए। पहली बात तो यही है कि , जैसा कि हम देख चुके हैं, द्र मा (उ सा) विभिन्न उलटी वात द्र