पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परिपथ के तीन सूत्र ११३ ... .. -- उत्पादन साधनों और श्रम शक्ति तक सीमित रहती है । मूल्य के विचार से उसकी उ सा की मांग उसकी पेशगी पूंजी से न्यून होती है ; वह जो उत्पादन साधन ख़रीदता है, उनका मूल्य उसकी पूंजी के मूल्य से कम होता है और इसलिए जिस माल पूंजी से वह पूर्ति करता है, उसके मूल्य से उत्पादन साधनों का मूल्य और भी कम होता है। जहां तक उसकी श्रम शक्ति की मांग का प्रश्न है, मूल्य के विचार से वह उसकी संपूर्ण पूंजी से उसकी परिवर्ती पूंजी के संबंध द्वारा निर्धारित होती है, अतः प:पूं के बराबर होती है। इसलिए पूंजीवादी उत्पादन में उत्पादन साधनों की उसकी मांग की तुलना में यह मांग अपेक्षाकृत न्यून होती जाती है। उसकी श्र की खरीद के मुकाबले उसकी उ सा की ख़रीद लगातार बढ़ती जाती है। चूंकि श्रमिक सामान्यतः अपनी मजदूरी को निर्वाह साधनों में और उसके अत्यधिक बड़े भाग को अत्यावश्यक वस्तुओं में परिवर्तित कर लेता है, अतः पूंजीपति की श्रम शक्ति की मांग अप्रत्यक्ष रूप में उन उपभोग वस्तुओं की मांग भी है, जो मजदूर वर्ग के लिए अनिवार्य होती हैं। किंतु यह मांग प के बरावर होती है और उससे रत्ती भर भी अधिक नहीं होती ('यदि श्रमिक अपनी मजदूरी का एक हिस्सा वचा लेता है - यहां हम सभी साख संबंधों को अनिवार्यतः छोड़ देते हैं - तो वह अपनी मजदूरी के एक हिस्से को अपसंचय में बदल लेता है, और उस हद तक दाम लगानेवाले की, ग्राहक की हैसियत से काम नहीं करता ) । पूंजीपति की मांग की ऊपरी सीमा है पूं, जो स + प के वरावर है ; किंतु उसकी पूर्ति स+प+ वे है। फलतः यदि उसकी माल पूंजी का गठन ८०+२०+ २०३ हो , तो उसकी मांग ८० +२० के वरावर होगी ; अतः उसमें समाहित मूल्य के विचार से उसकी पूर्ति मांग का पंचमांश कम होती है। उसके द्वारा उत्पादित वेशी मूल्य की राशि की प्रतिशतता ( उसकी मुनाफ़े की दर ) जितना ही ज्यादा होगी, उसकी पूर्ति की तुलना में उतना ही उसकी मांग कम होती जायेगी। यद्यपि उत्पादन के और अधिक विकास के साथ-साथ पूंजीपति की उत्पादन साधनों की मांग की तुलना में उसकी श्रम शक्ति की मांग और इसलिए अप्रत्यक्ष रूप में आवश्यक साधनों की मांग लगातार कम होती जाती है, फिर भी दूसरी ओर यह न भूलना चाहिए कि उसकी पूंजी की अपेक्षा उ सा के लिए उसकी मांग हमेशा कम होती है। अतः उसकी मांग मूल्य में उस पूंजीपति के माल उत्पाद से हमेशा कम होगी, जो समान मूल्य, की पूंजी से समान परिस्थितियों में काम करते. हुए उसे वे उत्पादन साधन मुहैया करता है। मुहैया करने का यह काम केवल एक पूंजीपति नहीं, अनेक करते हैं, इससे स्थिति वदल नहीं जाती। मान लीजिये, उसकी पूंजी १,००० पाउंड है; और उसका स्थिर भाग ८०० पाउंड है ; तब इन सभी पूंजीपतियों से उसकी मांग ८०० पाउंड. के बराबर होगी। यह मान लेने पर कि लाभ की दर वही बनी रहती है, वे सब मिलकर प्रत्येक १,००० पाउंड के बदले १,२०० पाउंड के उत्पादन साधन जुटाते हैं. ( इसका ख़याल किये विना कि प्रत्येक १,००० पाउंड में उनमें से हरेक का हिस्सा कितना आता है और उनमें से प्रत्येक का हिस्सा उसकी संपूर्ण पूंजी का कौन सा अंश व्यक्त करता है)। फलतः उसकी मांग उनकी पूर्ति का २/३ ही होती है, जब कि मूल्य के मापं में उसकी अपनी संपूर्ण मांग उसकी पूर्ति के ४/५ के बराबर ही होती है। प्रसंगतः, यावर्त की छानबीन करना अभी हमारे लिए वाक़ी ही है। मान लीजिये कि स f-1150