पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/११५

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११४ पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपय पंजीपति की सम्पूर्ण पूंजी ५,००० पाउंड है; इसमें ४,००० पाउंड स्थायी पूंजी हैं, और १,००० पाउंड प्रचल पूंजी हैं। मान लीजिये , ये १,००० पाउंड ८००+२००५ द्वारा गठित है, जो जार माना गया था। उसकी संपूर्ण पूंजी का साल में एक प्रावतं होने के लिए उसकी प्रचल पूंजी का पांच बार पावर्त होना चाहिए। तव उसका माल उत्पाद ६,००० पाउंट के बराबर , प्रर्यात पेशगी पूंजी से १,००० पाउंड अधिक होगा। इससे वेशी मूल्य का वही अनुपात बनता है, जो ऊपर बताया गया था: ५,००० : १,००० = १०० (स+प) २० वे अतः यह प्रावतं उसकी संपूर्ण पूर्ति से उसकी संपूर्ण मांग के अनुपात में कोई अंतर नही दालता। उसकी संपूर्ण पूर्ति की तुलना में उसकी संपूर्ण मांग उसका पंचमांश कम बनी रहती है। मान लीजिये, उसकी स्थायी पूंजी का नवीकरण दस साल में होना है। तव पूंजीपति हर साल दशमांश अथवा ४०० पाउंड निक्षेप निधि में डालता जायेगा ; इस प्रकार उसके पास स्यायी पूंजी के रूप में ३,६०० पाउंड का मूल्य + ४०० पाउंड द्रव्य ही बच रहेगा। अगर मरम्मत ज़रूरी हो और प्रोसत से ज्यादा दरकार न हो तो यह बाद में लगाई जानेवाली पूंजी के अलावा और कुछ नहीं है। इस बात को हम उसी तरह देख सकते हैं मानो उसने अपनी निवेश पूंजी के मूल्य का आकलन करते समय जहां तक वह उसके वार्पिक माल उत्पाद में सम्मिलित होती है , मरम्मत की लागत पहले ही गुंजाइश रख दी थी, जिससे कि वह निक्षेप निधि के उस दशमांश भुगतान में शामिल हो जाती है। (यदि उसकी मरम्मत की ज़रूरत औसत से कम हो, तो उतना द्रव्य उसके हाथ में आ जाता है, और यदि प्रोसत से ऊपर है, तो वात उलटी होगी। किंतु उद्योग की एक ही शाखा में संलग्न पूंजीपतियों के समस्त वर्ग के लिए यह बरावर ही बैठती है। ) जो भी हो, यद्यपि उसकी वार्षिक मांग अब भी ५,००० पाउंड ही है, जो उसके द्वारा पेशगी दिये मूल पूंजी मूल्य के बराबर है ( यह मान लेने पर कि उसकी संपूर्ण पूंजी का आवर्त साल में एक बार होता है ), पूंजी के प्रचल भाग के संदर्भ में यह मांग बढ़ती जाती है, जब कि उसके स्थायी भाग के संदर्भ में वह लगातार घटती जाती है। अब हम पुनरुत्पादन पर आ जाते हैं। हम यह मान लें कि पूंजीपति समस्त वेशी मूल्य वे का उपभोग करता है और मूल परिमाण की पूंजी पूं को ही उत्पादक पूंजी में पुनःपरिवर्तित करता है। तब पूंजीपति की मांग मूल्य में उसकी पूर्ति के बराबर होती है, किंतु यह बात उसकी पूंजी की गति के बारे में नहीं है। पूंजीपति की हैसियत से वह अपनी पूर्ति के ४/५ भाग के लिए ही ( मूल्य के अर्थों में ) मांग का प्रयोग करता है। १/५ भाग का उपयोग वह गैरपूंजीपति की हैसियत से, पूंजीपति के रूप में अपने कार्य के लिए नहीं, वरन अपनी निजी आवश्यकतानों अयवा इच्छानों के लिए करता है। उसका आकलन प्रतिशत रूप में इस प्रकार व्यंजित होता है : पंजीपति की हैसियत से मांग . पूर्ति १२० शहरी आदमी की हैसियत से मांग १२० , पूर्ति १२० 1 . १००, २०, पूर्ति कुल मांग