पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/११६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परिपथ के तीन सूत्र ११५ . यह कल्पना यह मान लेने जैसी है कि पूंजीवादी उत्पादन का अस्तित्व नहीं है, और इसलिए स्वयं प्रौद्योगिक पूंजीपति का अस्तित्व नहीं है। कारण यह कि मात्र यही कल्पना करके पूंजीवाद को समूल ख़त्म कर दिया जाता है कि प्रेरक हेतु निजी उपयोग है, न कि पैसा बटोरना। ऐसी कल्पना प्राविधिक दृष्टि से भी असंभव है। पूंजीपति के लिए यही आवश्यक नहीं होता कि वह आरक्षित पूंजी का निर्माण करे, ताकि भाव के उतार-चढ़ाव के झटके सहे जा सकें और वह क्रय-विक्रय के लिए अनुकूलतम परिस्थितियों की राह देख सके। उसके लिए पूंजी का संचय करना भी आवश्यक है, जिससे कि अपने उत्पादन को विस्तार दे सके और अपने उत्पादन तंत्र में प्राविधिक प्रगति का समावेश कर सके। पूंजी संचय के लिए आवश्यक है कि वह पहले परिचलन से द्रव्य रूप में वेशी मूल्य का एक भाग निकाल ले , जिसे उसने उस परिचलन से प्राप्त किया था और उसे तब तक अपसंचित किये रहे कि जब तक वह इतना परिवर्धित न हो जाये कि उसके पुराने व्यवसाय को विस्तार देने अथवा कोई सहायक उद्यम शुरू करने के लिए काफ़ी हो जाये। जब तक संचय का निर्माण चालू रहता है, तब तक वह पूंजीपति की मांग में वृद्धि नहीं करता। द्रव्य गतिहीन हो जाता है। वह माल बाजार से पूर्ति माल के लिए निकाले गये तुल्य द्रव्य के वदले कोई तुल्य माल नहीं निकालता। यहां साख पर विचार नहीं किया गया है। और साख में, उदाहरण के लिए, पूंजीपति द्वारा बैंक के चालू खाते में व्याज पर जमा किया हुआ संचयमान द्रव्य शामिल होता है। .